रविवार, 16 मई 2021

971--छिपकली की पूँछ

                 -अनिता ललित

‘छिपकली की पूँछ!’ -परिवार में कई लोग हमें यही कहकर चिढ़ाते थे! ये नाम हमारा इसलिए पड़ा था क्योंकि हम माँ के पीछे-पीछे उनका पल्लू पकड़े हर समय उनके साथ चिपके रहते थे! वो जहाँ जातीं, हम उनके पीछे वहीं पहुँच जाते! जब कोई हमें ऐसे चिढ़ाता, तो माँ हँसकर हमें और लाड़ करतीं, तब हम और भी ज़्यादा उनसे चिपक जाते! फिर कोई छेड़ता, “शादी होगी तब क्या करोगी?


तब तो माँ को भूलकर, चल दोगी ससुराल!” उसका जवाब हम ये देते कि “हम माँ को भी ले जाएँगे अपने साथ!” सब ख़ूब हँसते और कहते, “ये लो! अरे! कौन रखेगा भला?” तो हम कहते, “अगर नहीं रखेगा तो हम शादी ही नहीं करेंगे!”

     हमारे मन में बचपन से ही कहीं ये विश्वास हो गया था कि माँ हमेशा ही हमारे साथ रहेंगी! जब बड़े हुए, तो शादी भी हुई! उस वक़्त माँ को सिर्फ़ यही चिंता थी कि हम उनके बिना रहेंगे कैसे! कितने दिनों तक माँ सो नहीं सकीं! माँ का ये हाल उनके अंतिम वर्षों तक था, जब तक वो होश-ओ-हवास में थीं! (हालाँकि कुछ यही हाल पापा का भी था! उन्होंने कभी प्यार जताया नहीं, मगर जान छिड़कते थे वो हम पर –यह बात माँ ने ही हमें बताई, जब हम शादी के बाद घर गए!)

     हम तो ससुराल के नए वातावरण में, अपनी नई दुनिया में व्यस्त होने लगे थे, मगर माँ की दुनिया हमारे साथ ही चली आई थी! हमारे वहाँ पहुँचने के कुछ दिन पहले से ही हमारे आने की तैयारी करतीं –हमारे कमरे की हर चीज़, हमारी ज़रूरत का हर सामान हमें उसी तरह मिलता, जैसे शादी के पहले रहता था! मगर जब वापस जाने का समय आता, तो कुछ दिन पहले से उदास होने लगतीं! हमसे कहतीं, “तुम आकर जाती हो, जैसे नदी में कंकर फेंककर चली जाती हो!” हम उन्हें जल्द ही फिर से आने का दिलासा देते रहते! उनकी आँखों में आँसू छलक आते, मगर हम उनके सामने बिल्कुल नहीं रोते –बाद में भले रो लेते! समय धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा! हमारी हर ज़रूरत पर माँ हमारे सामने होतीं! आज हमें महसूस होता है कि वह ईश्वर द्वारा भेजी गई ‘एंजेल’ थीं, जिन्हें हमारी देखभाल के लिए हमारे जीवन में भेजा गया था!

    वक़्त और हालात के समीकरण भी बदलने लगे थे! माँ और पापा दोनों की उम्र ढल रही थी और सेहत गिरने लगी थी! दोनों को तब भी हमारा बहुत इंतज़ार रहता, अब और भी ज़्यादा! अब घर जाना हमारे लिए इस कारण भी अधिक आवश्यक हो गया था, क्योंकि अब वहाँ छुट्टियाँ बिताने या मज़े करने नहीं, बल्कि अपने कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए जाना ज़रूरी था!

     ईश्वर की बड़ी कृपा रही कि उसने हमें माँ व पापा के साथ बिताने को बहुत समय दिया –उन अमूल्य क्षणों की क़ीमत हम कभी भी नहीं चुका सकते! माँ-पापा दोनों का असीम स्नेह और आशीर्वाद उनके अंतिम क्षणों तक हमारे साथ था, और सदैव रहेगा! यह एक ऐसी पूँजी है, जो बहुत नसीबवालों को मिलती है –इसके लिए हम ईश्वर के बहुत-बहुत-बहुत... कृतज्ञ हैं!

      आज कोरोना की त्रासदी ने दुनिया में हाहाकार मचा रखा है, ऐसे में आए दिन किसी के जाने का दुखद समाचार मिलता है –दिल रो उठता है, जब किसी के माता-पिता के जाने की या किसी के घर का चिराग़ बुझने की ख़बर सुनाई पड़ती है! हाथ जोड़कर प्रभु से विनती है, “हे प्रभु! अब बस करो! न किसी के सिर से बड़ों का हाथ खींचो, न किसी के आँगन को सूना करो! सबकी रक्षा करो!”

1

न छीनो! प्रभु!

माता-पिता का साया

कच्ची उम्र में!

2

माँ का आँचल

खिलती फुलवारी

नहीं हो सूनी!

-0-

11 टिप्‍पणियां:

  1. दूर चले जाने पर भी माता-पिता का आशीर्वाद बना रहता है। सजीव एवं मर्मस्पर्शी चित्रण। पढ़ते-पढ़ते मन भर आया।
    बहुत सुंदर।

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  2. हृदयस्पर्शी हाइबन।
    माता पिता के प्रेम की छाँव में हम सदैव सुरक्षित रहते हैं और उनके अनंत-यात्रा पर चले जाने के बाद स्वर्ग के भेजे गये उनके आशीष के साये में।
    पढ़कर आँखें नम हो गयीं।



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  3. बहुत ही भावमय लिखा ... माँ और माँ की ममता से भीगा हर शब्द पलकों को नम कर गया।
    “हे प्रभु! अब बस करो! न किसी के सिर से बड़ों का हाथ खींचो, न किसी के आँगन को सूना करो! सबकी रक्षा करो!”
    हर पल यही दुआ है ... ईश्वर सबकी रक्षा करें।

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  4. भावपूर्ण-हृदयस्पर्शी हाइबन ।बधाई अनिता जी।

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  5. दिल से लिखा हाइबन दिल में उतर गया!
    दिल से नमन आपकी रचना को अनिता जी।🙏

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  6. सराहना एवं प्रोत्साहन के लिए आप सभी सुधीजनों का हार्दिक आभार!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  7. मर्मस्पर्शी हाइबन...हार्दिक बधाई अनिता जी।

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  8. भावपूर्ण सृजन
    बधाइयाँ अनिता जी

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  9. बहुत मर्मस्पर्शी...दिल छू लिया आपने, बहुत बधाई |

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  10. अनिता जीं बहुत सुंदरता से माता की ममता और पिताजीं के प्यार को वर्णित किया है उनका आशीर्वाद सदा बना रहे। हार्दिक बधाई स्वीकारें।

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