रविवार, 30 मई 2021

973-सारे रंग ज्यों के त्यों

 

रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

1-सारे रंग ज्यों के त्यों

 

आकाश-मण्डल रोशनी में सराबोर, दैदीप्यमान धरा इस छोर से उस छोर, रंगोली से


सुसज्जित घर-आँगन-द्वार, मुँडेर पर प्रज्ज्वलित दीपों की कतार, तारों के देश जाने का मन करते पटाखे पृथ्वी-पथ से नभ में ऊँची उड़ान भरते, आतिशबाजी का उमड़ता शोर, दिशाएँ गुंजित, नाद छितरा हुआ चहुँ ओर।

नन्हे दीयों की लड़ी और जगमग करती वह फुलझड़ी आज भी मेरे मन-संसार में अनोखा उजास बिखेर देती है। 

यादें अब भी उल्लसित हो उत्सव मनाती हैं उन तीज-त्योहारों का, कभी दृश्य धूमिल नहीं हुआ अबीर-गुलाल की फुहारों का, माँ के हाथों से सजी अप्रतिम रंगोली, वह दीपोत्सव और वह पर्व होली, आँखों के सम्मुख आज भी वह सारे रंग ज्यों के त्यों हैं।

 

अक्षुण्ण दीप

प्रदीप्त-स्मृति-द्वार

नित्य-त्योहार

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2- कोरी माटी के नन्हे दीये

 

कोरी माटी के नन्हे दीये मुझे अपनी ओर सदा खींचते थे, क्योंकि मैं भी उनके समान था कोरी कच्ची मिट्टी -सा नन्हा बालक। बचपन ऐसा ही होता है संस्कारों के चाक पर जिस ढाँचे में ढाला जाए, बच्चे ढल जाते हैं। कुसंगत-झंझावात से दूर रखे जाएँ तो दीपक सम रोशनी फैलाते हैं, अन्यथा जीवन के गहन तिमिर में खो जाते हैं।

"राम जी शाम तक आ जाएँगे, उनके आने से पहले मन्दिर बना लेना है भाई। सबसे पहले आकर वही पूजा करेंगे"

माँ मुस्काते हुए बोली-" मेरे प्यारे राजकुमार! राम जी भगवान हैं ना? वह हर जगह हैं बस दिखाई नहीं देते। अपनी आँखें बंद कर उनको प्रणाम करना।"

"और खील-बताशे भी खिलाऊँगा" कहता हुआ मैं झटपट छत पर बने मन्दिर की तरफ नंगे पाँव दौड़ पड़ा। बच्चों का निराला खेल था हर दिवाली ईंटों का एक छोटा- सा मन्दिर बनाना, उसमें खील-बताशे चढ़ा भगवान को भोग लगाना, फिर दीये जलाना और पटाखे छुड़ाना।

बगल की छत पर ज्यों  मेरी नजर पड़ी, भृकुटि तन गईं। क्रोध चरम पर, तीसरा नेत्र खुलने को, परंतु खुलकर तांडव नहीं कर सका पिता के भय से। यदि उन्हें मेरे मन में धधक रही ईर्ष्या-अग्नि का तृण भर भी आभास होता तो महाप्रलय आ जाती। 

"मुकेश उधर देख, उन्होंने अपना मन्दिर कितना सुंदर बना लिया और हमारे मन्दिर पर रँगाई अभी तक पूरी नहीं"

"अब क्या करें भाई?"

"तू चिंता मत कर। पूजा तो पहले अपने ही मन्दिर में होगी"

मेरे अंदर इतिहास का क्रूर राजा जीवंत हो उठा, जिसने सदियों पहले मन्दिर आक्रमण कर आस्था-विश्वास को गहरी चोट पहुँचा थी। नीचे जाकर थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा फिर अचानक इतिहास दोहराने उठा। पटाखों के थैले से एक सुतली बम निकाला। जेब में माचिस रखी। छत के एक कोने पर जा चुपचाप सुतली पर तीली खींच दी और पुन: कमरे में आकर लेट गया।

कुछ क्षण बाद "धडाम"

"जय श्री राम! हो गया काम" मैं निश्चिंत हुआ।

"अरे ये धमाका कैसा" पिता जी घबरा से बाहर आ। मैं भी अनजान बना पीछे-पीछे चला घटना का जायजा लेने, पीड़ित बच्चों को थोथी सांत्वना देने। रोते-रोते उन्होंने सारा वाकया सुनाया- "मन्दिर टूट गया" ये सुन अपनी फतेह पर गर्व महसूस हुआ।

"कोई बात नहीं। तुम भी हमारे मन्दिर में पूजा करने आ जाना" सहानूभूति से ज्यादा अहसान भरे शब्दों ने दूर से ताकती माँ की नजरों के सामने सारा भेद खोल दिया।

"उमेश जरा इधर आ"

"अभी आया माँ "

जोर से कान एँठते हुए बोली "आज पापा की मार से कोई नहीं बचा सकता तुझे, मैं भी नहीं

"माफ कर दो प्लीज माँ"

"नहीं" पिता की रौबीली आवाज सुन मैं काँप उठा मगर मार से बच्चे सुधरते कम ढीठ ज्यादा हो जाते हैं यही सोच उन्होंने प्यार से मुझे अपने नजदीक सोफे पर बैठाया

"मैं आज तुम्हारे पैर तोड़ दूँ और तुम्हें कई दिन तक भयंकर दर्द हो, क्या तुम्हें ये अच्छा लगेगा?"

"बिल्कुल नहीं"- मैंने डरते-डरते गर्दन हिलाई।

"तो सोचो तुमने उस मन्दिर को तोड़कर उन बच्चों को कितना दर्द दिया, जिसे उन्होंने इतने प्यार से बनाया था?"

"मुझे माफ कर दो पापा। फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा"

"उमेश बेटा! मन्दिर भगवान का घर है। उनके द्वार पर उनसे मिलने अमीर-गरीब, छोटा-बड़ा हर इंसान जब भी जाता है वह सदा सबको अपना आशीर्वाद देते हैं। कभी नफरत या जलन की भावना नहीं रखते कि किसी ने पूजा पहले क्यों की? कोई दूसरे मन्दिर में क्यों गया

भगवान के लि सब एक बराबर हैं। यही समता का भाव यदि तुम अपने मन में रखोगे तो ईश्वर से हमेशा आशीर्वाद पाओगे"

 

द्योतित-पंथ

पितु-प्रेम-दीप-लौ

आभा-अनंत।

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18 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों हाइबन बहुत अच्छे हैं, पर कोरी माटी के नन्हे दीये- ये हाइबन अपने सार्थक सन्देश के साथ मन को छू गया | बहुत बधाई |

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  2. दोनो ही हाइबन सुंदर।रश्मि विभा जी को बधाई

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  3. दोनों हाइबन सुंदर। कोरी माटी के नन्हे दीये’ अच्छा संदेश देता हाइबन। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

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  4. आपकी लेखनी दिनोंदिन निखरती जा रही है।
    बहुत खुशी की बात है। शब्द चयन बहुत सुंदर लगा।

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  5. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (31-05-2021 ) को 'नेता अपने सम्मान के लिए लड़ते हैं' (चर्चा अंक 4082) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  6. बहुत सुंदर रचनाएंँ।कोरी माटी के नन्हे दिये रोचक और सुंदर।साथ ही संदेशात्मक होना और भी बेहतर है।

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  7. बहुत सुंदर हाइबन... हार्दिक बधाई ।

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  8. नन्हे दीयों की लड़ी और जगमग करती वह फुलझड़ी आज भी मेरे मन-संसार में अनोखा उजास बिखेर देती है। 𝗔𝗺𝗮𝘇𝗶𝗻𝗴 𝗞𝗲𝗲𝗽 𝗪𝗿𝗶𝘁𝗶𝗻𝗴✍️✍️👍👍👍👍
    𝗣𝗹𝗲𝗮𝘀𝗲 𝘃𝗶𝘀𝗶𝘁 𝗺𝘆 𝗯𝗹𝗼𝗴𝗮 𝘀𝗵𝗮𝗿𝗲 𝘆𝗼𝘂𝗿 𝗼𝗽𝗶𝗻𝗶𝗼𝗻 𝗮𝗻𝗱 𝗳𝗼𝗹𝗹𝗼𝘄 𝗺𝗲

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. दोनो ही हाइबन बहुत खूब!
    प्रिय रश्मि विभा जी को हार्दिक बधाई।

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  11. दोनों हाइबुन बहुत सुंदर।

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  12. असाधारण !
    पर बाल मन में न जाने ये ईर्ष्या के पोधें क्यों अंकुरित होते हैं कोई मनोवैज्ञानिक ये नहीं बता पाता हाँलाकि घर में अच्छे संस्कार की उपज होती है फिर भी।
    निःसंदेह बहुत सटीक बाल मनोविज्ञान और संदेशात्मक सृजन।

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  13. आपका संदेशात्मक हाइबन बहुत ही सुन्दर विभा जी, हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकारें। हार्दिक बधाई।

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  14. सुन्दर सृजन के लिए बधाई रश्मि जी!

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  15. नव सृजन की प्रेरणा देती आप सभी आत्मीयजन की टिप्पणी का हार्दिक आभार।

    मुझे बेहद प्रसन्नता है कि आप सभी को मेरा हाइबन पसंद आया। मेरा लिखना सार्थक हुआ।

    सादर

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  16. दोनों हाइबन बहुत ही सुंदर
    हार्दिक शुभकामनाएँ रश्मि जी

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