रविवार, 20 जून 2021

974-पितृ -दिवस

 1-मानस पिता !

 प्रियंका गुप्ता


 यूँ तो हर किसी को बहुत लोग मिलते हैं, कुछ याद रहते हैं और कुछ साथ रहते हैं । साथ रहना...शाब्दिक नहीं, भावात्मक और मानसिक रूप से साथ...। 

 


आज पितृ दिवस है । आज के दिन किसी रस्म-रिवाज़ के तौर पर नहीं, बस दिल से ये संदेश अपने उन मानस पिता के लिए जो कभी गुरु की तरह थोड़ा गम्भीर रहे, कभी मार्गदर्शक बन के रास्ता सुझाया, कभी पिता की ही तरह चिंता करते हुए कष्ट में सम्बल बने तो कभी एक दोस्त की तरह चिंतामुक्त करते हुए हँसाया ।

 जिनसे हम कभी थोड़ा डरे भी तो कभी एक मुँहलगे बच्चे की तरह शरारत और लापरवाही करने से भी बाज नहीं आए । जिनसे मन की बचकानी बातें शेयर करते समय हमने कभी नहीं सोचा कि वो क्या सोचेंगे...और कभी अपनी बातें बताते समय आपने माना, बच्चा बड़ा हो गया ।

 अंकल का सम्बोधन देने वाले अपने उन्हीं फ्रेंड , फिलॉसफर एंड गाइड को आज के दिन की दिली शुभकामनाएँ और सादर प्रणाम ।

आज आपसे एक वादा...हम नहीं सुधरेंगे ।

क्योंकि आप हैं न...जो कुछ भी हो जाए, हमको कभी बिगड़ने ही न देंगे ।

 

ढूँढती फिरूँ

जब लड़खड़ाऊँ

पिता का काँधा ।

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2- देखने की उत्कंठा

[आज सुबह मैंने स्वप्न में पिता को देखा वह मुझे देखने आ थे। जो मुझसे कहा, वह हाइबन के रूप में]

 रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

 


दैनंदिन आपाधापी में तृणमात्र समय का स्मरण ही नहीं रहा कि आने वाला कल जीवनदाता को समर्पित है।

पिता के अनंत यात्रा पर जाने के उपरांत उनकी अनुपस्थिति में यह दिन वैसे भी मेरे लिये सूना हो गया था।

सुबह से शाम तक के सारे क्रिया-कलाप से निवृत्त हो देर रात्रि मैं आँखों को विश्राम देने का प्रयास करने लगी। हालांकि नींद मुझसे कोसों दूर ही रहा करती थी। 

तंद्रा के झोंके में अचानक एक छवि दृश्यमान हुई।

आह! अत्यंत अद्भुत और अविस्मरणीय क्षण। पिता मेरे आसन्न हैं और मेरा मन मन्तव्य में लीन कि उनके स्वागत-सत्कार हेतु कोई समुचित प्रबंध नहीं।

आत्मा सर्वदा सर्वज्ञाता है। मेरे भावों के प्रत्युत्तर में बोले-"तुझे आज भी मेरी सुधि है इससे श्रेष्ठ व समुचित प्रबंध और क्या होगा बेटी? इस संसार में कौन किसे कितनी अवधि तक याद रखता है? मैं अधिक देर नहीं ठहरूँगा। क्षण भर को तुझे देखने की उत्कंठा मुझे यहाँ खींच लाई"

 पिता का प्रेम

बाल-कुशल-क्षेम

अभिलाषी है।

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18 टिप्‍पणियां:

  1. रश्मि जी, भावुक कर गया आपका हाइबन । मेरी मंगलकामनाएँ ।
    परम आदरणीय काम्बोज जी ने मेरे भी हाइबन को यहाँ स्थान दिया, बहुत आभार ।

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  2. प्रियंका जी आपके हाइबन में मैं अपनी भावनाएं देख रही हूं।
    बधाई आपको शब्द मिले। शुभकामनाएं

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    1. बहुत आभार अनीता...मानवीय संवेदनाएं एक सी ही तो होती हैं सभी की...।

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  3. रश्मि जी क्या कहूँ, भावुक कर दिया। आपको शक्ति मिले, कामना करती हूँ।

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  4. यूँ तो हर दिन ही अपने आत्मीयजनों के लिए समर्पित होता है, परंतु फिर भी...ये दिवस-विशेष मन में कहीं न कहीं, अवश्य ही कुछ रचने को प्रेरित करते हैं। माता-पिता तो वैसे भी अतिविशिष्ट श्रेणी में आते हैं। उन्हें हर दिन ये दिल याद करता है, और न जाने कहाँ-कहाँ की पुरानी यादें आँखों के आगे घूमती रहती हैं।
    प्रियंका जी और रश्मि विभा जी, आप दोनों के हाइबन मन को भीतर तक छू गए। इन सुंदर सृजन हेतु आप दोनों को हार्दिक बधाई!
    ~सादर
    अनिता ललित

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  5. दोनों ही हाइबन भावपूर्ण ...
    सुन्दर सृजन के लिए प्रियंका जी एवं रश्मि जी को हार्दिक शुभकामनाएँ

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  6. दोनों हाइबन भावपर्ण, मर्मस्पर्शी। प्रियंका जी एवं रश्मि जी को हार्दिक बधाई।

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  7. मेरे हाइबन को प्रकाशित करने हेतु सम्पादक द्वय का एवं हाइबन को पसंद कर अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया देने हेतु आप सभी आत्मीय जन का हार्दिक आभार।

    सादर
    रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

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  8. सुन्दर हाइबन।
    आदरणीया प्रियंका जी को सुन्दर सृजन की हार्दिक बधाई।

    सादर

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  9. दोनो हाइबन मर्मस्पर्शी और भावनात्मक हैं बधाई स्वीकारें।

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  10. सुन्दर हाइबन के लिए प्रियंका जी व रश्मि जी को बधाई स्वीकार हो |

    पुष्पा मेहरा

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  11. भावपूर्ण शब्दांजलि मन को भिगो गई .. दोनों ही हाईबन उत्कृष्ट ... रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई।

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  12. दोनों ही हाइबन मन को छू गए!
    प्रियंका जी एवं रश्मि जी को हार्दिक बधाई ।

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  13. प्रियंका जी और रश्मि जी के हाइबन पढ़कर मन भावुक हो गया.

    प्रियंका जी ने जिस तरह नटखट होकर लिखा है, मन ने चाहा कि काश! किसी के सामने मैं भी ऐसा कर पाती. बहुत सुन्दर लिखा आपने. बहुत बधाई.

    रश्मि जी के हाइबन पढ़कर अपने पिता की याद आ गई, जिन्हें सपने में देखे हुए भी न जाने कितने साल बीत गए. सपने में एक झलक पाने को तरस गई हूँ. बहुत ख़ुशी हुई कि आपके पिता आपके स्वप्न में आए. भावुक लेखन के लिए बधाई.

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  14. आज पितृ दिवस है । आज के दिन किसी रस्म-रिवाज़ के तौर पर नहीं, बस दिल से ये संदेश अपने उन मानस पिता के लिए जो कभी गुरु की तरह थोड़ा गम्भीर रहे, कभी मार्गदर्शक बन के रास्ता सुझाया, कभी पिता की ही तरह चिंता करते हुए कष्ट में सम्बल बने तो कभी एक दोस्त की तरह चिंतामुक्त करते हुए हँसाया ।
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