गुरुवार, 25 अगस्त 2022

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 रश्मि विभा त्रिपाठी


1
मौसम आना- जाना

मैं ना बदलूँगी

तुमको जीवन माना।

2

तुमसे जो डोर बँधी

इसके ही कारण

अब तक है साँस सधी।

3

तुझ- सा पाके साथी

पल- पल मैं माही

अब गाती, मुस्काती।

4

मुश्किल में थाम लिया

तेरी दो बाहें

अब मेरी हैं दुनिया।

5

खुश्बू से खूब भरी

माही महका दी

तुमने मन की नगरी।

6

कितने भी हों रोड़े

तुमने समझाया

मुश्किल के दिन थोड़े।

7

गम की ये बरसातें

धीर बँधाती हैं

मुझको तेरी बातें।

8

दुनिया से क्या करना

तेरे दम से है

मेरा जीना- मरना।

9

जबसे ये तार जुड़े

माही मन मेरा

तेरी ही ओर उड़े।

10

मुझमें जो आशा है

उसको तुमने ही

दिन- रात तराशा है।

11

मंदिर ना गुरुद्वारे

मेरा सर झुकता

बस तेरे ही द्वारे!

16 टिप्‍पणियां:

  1. रश्मि विभा जी के बहुत मधुर माहिया सृजन । हार्दिक बधाई लें।

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  2. मंदिर ना गुरुद्वारे
    मेरा सर झुकता
    बस तेरे ही द्वारे!....वाह,प्रत्येक माहिया कोमल अनुभूतियों की सुंदर अभिव्यक्ति है।बधाई रश्मि विभा जी।

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  3. सत्य की खोज में निकला, बेहतरीन माहिया, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  4. मेरे माहिया प्रकाशित करने के लिए आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।

    आदरणीया विभा रश्मि जी, आदरणीय भीकम सिंह जी, शिव जी श्रीवास्तव जी एवं कपिल जी का हार्दिक आभार।

    सादर

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  5. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 26 अगस्त 2022 को 'आज महिला समानता दिवस है' (चर्चा अंक 4533) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  6. बहुत सुंदर माहिया रश्मि जी विशेषतः 6, 7, 9, 10!

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  7. मन को छूते माहिया
    बहुत सुंदर

    बधाई

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  8. बहुत सुंदर माहिया। हार्दिक बधाई रश्मि जी। सुदर्शन रत्नाकर

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  9. गहन भाव लिए माहिया लोक छंद की सुंदर अभिव्यक्ति।

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  10. प्रेम में भीगे सभी माहिया एक से बढ़कर एक! बहुत प्यारे!

    ~सस्नेह
    अनिता ललित

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  11. कोमल भावनाओं को उकेरते हुए ये माहिया रचने के लिए हार्दिक बधाई

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