कपिल कुमार
1
पृथ्वी अभागी
सहती रही खड़ी
दुःख की घड़ी
बन अबला नारी
नर ने लेके
आधुनिक मशीनें
काटके सीने
अंदर से निकाले
माल-मसाले
फिर भी नही भरा
धरा को गए
छोड़के अधमरा
आगे नई खोज में।
2
पीपल खड़े
उम्रदराज बड़े
घर के बीच
टहनियाँ हिलाते
वर्षों से घने
सिपाहियों- से तने
बन-ठनके
किंवदंतियाँ जैसे
भूत-निवास
एक दिन ले गई
उनकी श्वास-श्वास।
-0-
दोनो ही चोका सार्थक एवं भावपूर्ण,विकास के नाम पर पृथ्वी का दोहन करते मनुष्य के चरित्र के साथ ही आँगन के पीपल का बुजुर्गों की तरह रहने और चले जाने का सुंदर चित्र।
जवाब देंहटाएंविकास के नाम पर पृथ्वी के दोहन का यथार्थ चित्रण करते सुंदर चोका। बहुत बहुत बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक चोका।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीय।
सादर
अत्यंत सुंदर... सार्थक सृजन 🌹🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशानदार जबरदस्त
जवाब देंहटाएंसुंदर वृतांत
जवाब देंहटाएंसुंदर वृतांत
जवाब देंहटाएंसार्थक चोका के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएं