[ एक शिक्षक और प्राचार्य के रूप में मेरी अनुजाश्री कमला निखुर्पा, जिस विद्यालय में भी रहीं, उसका नाम उन्नत किया। आज उनका एक चोका प्रस्तुत है। ऐसे प्रबुद्ध गुरु को नमन-काम्बोज]
मन-मयूर
हो गया रे मगन
ठुमक नाचे
रिमझिम के संग
बाहों के पंख
पसार उड़ चला
पुरवा संग
टिप-टिप की धुन
जलतरंग
दूर क्षितिज पर
घूँघट
पट
खोल बिजुरी हँसी
लजा के छुपी
आए मेघ रंगीले
बजे नगाड़े
भिगोई चुनरिया
सिहर उठी
लाज से हुई लाल
खिलने लगे
अनगिन गुलाब
दूर तलक
लहराई पुरवा
महकी माटी
कुहू-पीहू की धुन
से गूँज रही घाटी ।
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अतिसुंदर भावसिक्त चोका 🌹🙏
जवाब देंहटाएंवर्षा में भीगती धरा और भीगते मन की सरस् अनुभूतियों का सुंदर चोका।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मनमोहक चोका। कमला जी का धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चोका।
जवाब देंहटाएंआदरणीया कमला निखुर्पा जी को हार्दिक बधाई।
सादर
बहुत सुंदर सरस चोका। कमला जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंकमला निखुर्पा जी का लाजवाब चौका , बरखा ऋतु में प्रकृति के सौन्दर्य का अनोखा चित्रण । हार्दिक बधाई कमला जी ।
जवाब देंहटाएंबरखा ऋतु के लाजवाब सरस चोका रचना के लिये कमला जी को बधाई ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ,अद्भुत बिंब
जवाब देंहटाएंअद्भुत, सुंदर रचना दी,🙏🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप सभी सुधी जनों का
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चोका है, आदरणीय कमला जी को बहुत बधाई
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