सोमवार, 5 सितंबर 2022

1070-मन-मयूर

[ एक शिक्षक और प्राचार्य के रूप में  मेरी अनुजाश्री कमला निखुर्पा, जिस विद्यालय में भी रहीं, उसका नाम उन्नत किया। आज उनका एक चोका प्रस्तुत है। ऐसे प्रबुद्ध गुरु को नमन-काम्बोज]


 कमला निखुर्पा

मन-मयूर

हो गया रे मगन

ठुमक नाचे

रिमझिम के संग

बाहों के पंख

पसार उड़ चला 

पुरवा संग

टिप-टिप की धुन

जलतरंग

दूर क्षितिज पर 

 घूँघट पट

खोल बिजुरी हँसी

लजा के छुपी

आए मेघ रंगीले 

बजे नगाड़े

भिगोई चुनरिया

सिहर उठी

लाज से हुई लाल

खिलने लगे

अनगिन गुलाब 

दूर तलक

लहराई पुरवा 

महकी माटी

कुहू-पीहू की धुन

से गूँज रही घाटी ।

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13 टिप्‍पणियां:

  1. वर्षा में भीगती धरा और भीगते मन की सरस् अनुभूतियों का सुंदर चोका।

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  2. बहुत सुंदर मनमोहक चोका। कमला जी का धन्यवाद।

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  3. बहुत सुंदर चोका।
    आदरणीया कमला निखुर्पा जी को हार्दिक बधाई।

    सादर

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  4. बहुत सुंदर सरस चोका। कमला जी को हार्दिक बधाई।

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  5. कमला निखुर्पा जी का लाजवाब चौका , बरखा ऋतु में प्रकृति के सौन्दर्य का अनोखा चित्रण । हार्दिक बधाई कमला जी ।

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  6. बरखा ऋतु के लाजवाब सरस चोका रचना के लिये कमला जी को बधाई ।

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  7. अद्भुत, सुंदर रचना दी,🙏🙏

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  8. बहुत बढ़िया चोका है, आदरणीय कमला जी को बहुत बधाई

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