भीकम सिंह
1
सोच में बैठे
खेत की मेड़ पर
वो, आजकल
बारिश में धूप का
जैसे कोई दख़ल ।
2
तेरे ही लिए
कुहनी पे टिका है
मेरा आगाज़
पीठ सरहद है
जुगनू हमराज़ ।
3
जैसे उसकी
पदचाप -सी हुई
गली में कई
मौसम के तेवर
माघ में हुए मई ।
4
छुई सवेरे
धूप ने जब ओस
वसंत खिला
यादों का पतझड़
करता रहा गिला ।
5
जब भी वह
राह से गुजरते
यों
सॅंवरते
बारिश के ज्यों मेघ
नींद में उतरते ।
6
प्यार के दृश्य
रात फिर घुमड़े
मेघों के साथ
तलाशता रहा मैं
जुगनुओं का साथ ।
-0-
बहुत ही सुंदर ताँका।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीय 🌹💐🌷
सादर
बहुत ही सुंदर ताँका।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीय 🌷💐🌹
सादर
बहुत सुंदर ताँका...हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन. सर ..🌹🙏🏻😊
जवाब देंहटाएंसभी तांका बेहतरीन।हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छे बिम्ब और गहरे भाव लिए अच्छे ताँका की हार्दिक बधाई जी।
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत सुन्दर ताँका।हार्दिक बधाई सर।
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक सभी ताँका बहुत सुंदर । हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंमेरे ताॅंका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और आप सभी की मनभावन टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ताँका हैं सभी, हार्दिक बधाई
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