1-भीकम
सिंह
1
मैं ढूँढता हूँ
प्रेम का स्थानापन्न
उसका तौर
उसे उसमें देखूँ
अपने चारों ओर।
2
मैंने देखे हैं
विश्वास बॅंधे हुए
उन रिश्तों में
जो उदास थे , पर
चले सीधी सिम्तों में ।
3
सारा दिन ही
बारह बजे रहे
मिल ना पाया
रोकके रखी धूप
मैं साया हो ना पाया ।
4
मुद्दत हुई
कोई आहट आए
तेरे पाँवों की
क्या बसा ली है तूने
दुनिया मचानों की ।
5
खूबसूरत है
बचपन का प्रेम
ज्यों कोहिनूर
तलाशता राहों को
नुमाइशों से दूर ।
0-
सुन्दर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीय
सादर
अति सुंदर भाव!!
जवाब देंहटाएं-प्रीति अग्रवाल
हटाएंबहुत सुंदर रचनाएँ!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ताँका...हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ताँका। हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर तांका। भीकम जी को बधाई
जवाब देंहटाएंमेरे ताॅंका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और मनभावन टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार।
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