बुधवार, 28 सितंबर 2011

लाचार किसान


(1)
अरे किसान
तेरे खेत हँसते
मुसकाई हैं
ये धान की बालियाँ
फ़िर तू क्यों रोया है ?
(2)
कड़क धूप
जलाती तन-मन
हाड़ कँपाती
ये बैरन सर्दी भी
छत टपक रोती।
(3)
कटी फ़सल
अन्न लदा ट्रकों पे
लगी बोलियाँ
किसान के हिस्से में
भूसे का ढेर बचा
(4)
प्यारा था खेत
सींचा था पसीने ने
बहा ले गया
पगलाया बादल
बस एक पल में।

-कमला निखुर्पा

7 टिप्‍पणियां:

  1. कमला निखुर्पा जी के किसान के व्यथा-कथा को बहुत सुन्दर ढंग से इन तांकों में व्यक्त किया है…

    जवाब देंहटाएं
  2. कटी फ़सल
    अन्न लदा ट्रकों पे
    लगी बोलियाँ
    किसान के हिस्से में
    भूसे का ढेर बचा ।
    -इन पंक्तियों में कमला जी ने किसान की दुर्दशा का मार्मिक एवं यथार्थ चित्रण किया है । अछुते विषय पर ये ताँका सामाजिक सरोकार की सजगता भी दर्शाते हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. तांका लिखने का मेरा प्रयास आपको भाया .. धन्यवाद..

    जवाब देंहटाएं