रविवार, 16 अक्टूबर 2011

पीर जो पली


डॉoउमे महादोषी
1.
पीर जो पली
अन्तस में गहरे
आँख में भली
सम्हाल रे मन तू
दिल की ये गगरी!
2.
रहा न पता
डाकिया भटकता
वापस हुआ
पत्र वो पढ़ूँ कैसे
लिखा था जिन्दगी ने!
3.
पाई पिता से
सौंपूँ पुत्र को कैसे
विरासत वो
मैं अनुगामी साया
वो नायक नभ का!
4.
गिद्ध कहता
हंस का चोला मेरा
कौआ ऐंठता
फड़फड़ाता पंख
देखता चिड़ियों को
5.
बाज उड़ते
आका में अनेक
दिखता एक
दुनिया नहीं होगी
बाजहीन कभी भी!
-0-

5 टिप्‍पणियां:

  1. मैं अनुगामी साया
    वो नायक नभ का!

    सभी ताँका एक से बढ़कर एक हैं|ये पंक्तियाँ दो पीढ़ियों के विचार परिवर्तन को बहुत सटीक ढंग से दर्शा रही हैं|सहज साहित्य पर पथ के साथी लेबल के अन्तर्गत मेरी एक कविता है-आज का दर्द-उसमें मैंने भी
    दो पीढ़ियों के अन्तर्द्वंद को बताने की कोशिश की है|
    उमेश जी को बधाई|

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  2. bahut achche tanka hain badhai.........
    saadar,
    amita

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  3. गिद्ध कहता–
    हंस का चोला मेरा
    कौआ ऐंठता
    फड़फड़ाता पंख
    देखता चिड़ियों को
    bahut gahre bhav hain bahut bahut badhai
    rachana

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  4. बाज उड़ते
    आकाश में अनेक
    दिखता एक
    दुनिया नहीं होगी
    बाजहीन कभी भी!
    बहुत सुन्दर और मार्मिक तांका .....बहुत-बहुत बधाई ...
    डा. रमा द्विवेदी

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