रविवार, 11 दिसंबर 2011

प्रेम की भाषा


डॉ0अमिता कौण्डल
1
ये बचपन
कागज की कश्ती में
जिया हमने
तो कभी सारी रात
सितारों में बिताई
2
वो बचपन
अब यादों में खोया
ख़्वाबों में आया
जी भर के जिया औ'
हर पल मुस्काया
3
दर्द ने ढूँढ़ा
हमें हर राह पे
' बना साथी
ख़ुशी तो छोड़ गई
मझधार में  हमें
4
ये दर्द बना
हमसफ़र हमेशा
साथ निभाया
खुशी में भी रहा था 
दुबक के ये संग
5
मेरा ये प्रेम
नैनों में सपने- सा
दबा ही रहा
तुम समझे नहीं
मैं समझा न पाई
6
प्रेम की भाषा
मैं समझ न पाई
जब भी बोली
चोट दिल पे खाई
मुझे रास न आई
7
पिया -बिछोह
कंटक सा -चुभता
दर्द ही देता
कर देता छलनी
हृदय विरह में
8
जागे हैं नैन
जब से तुम गए
आँखों के मेघ
बरसें दिन रैन
दिल पाए न चैन
9
चैन भी गया
तुम्हारे संग पिया
व्याकुल मन
तड़पें हर पल
मीन ज्यों बिन जल
10
माँ का महत्त्व
माँ बनी तो ही जाना
धन्य हुई मैं!
बनी जब बिटिया
तभी माँ बन पाई
-0-

9 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम की भाषा
    मैं समझ न पाई
    जब भी बोली
    चोट दिल पे खाई
    मुझे रास न आई ...
    Ati sundar !

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  2. Bahut sundar.
    माँ का महत्त्वमाँ बनी तो ही जानाधन्य हुई मैं!बनी जब बिटियातभी माँ बन पाई .

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  3. प्रेम की भाषा
    मैं समझ न पाई
    जब भी बोली
    चोट दिल पे खाई
    मुझे रास न आई

    बहुत सुन्दर!

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  4. बहुत सुन्दर भाव हैं...। जीवन के कई रूपों को स्पर्श किया है आपने...बधाई...।
    प्रियंका गुप्ता

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  5. अमिता जी के ये तांका बहुत सधे हुए और प्रभावकारी हैं। बधाई !

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  6. बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण तांका ! बधाई!

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  7. sabhi taanka bahut sundar aur bhaavpurn...

    प्रेम की भाषा
    मैं समझ न पाई
    जब भी बोली
    चोट दिल पे खाई
    मुझे रास न आई

    shubhkaamnaayen.

    जवाब देंहटाएं
  8. दर्द ने ढूँढ़ा
    हमें हर राह पे
    औ' बना साथी
    ख़ुशी तो छोड़ गई
    मझधार में हमें


    प्रेम की भाषा
    मैं समझ न पाई
    जब भी बोली
    चोट दिल पे खाई
    मुझे रास न आई
    बहुत सुन्दर तांका .....बहुत-बहुत बधाई ...
    डा. रमा द्विवेदी

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