बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

खिलेगी ये जिन्दगी


दिलबाग विर्क
 1
छाया: रोहित काम्बोज
  स्थायी नहीं है
  दुःख का पतझड़
   जब पड़ेंगी
    आशाओं की फुहारें
      खिलेगी ये जिन्दगी
      2
चलता रहे
  क्रम जीत हार का
 आशा रखना
दिल पर न लेना
कभी किसी हार को
      3
निराशा विष
आशा जीवनामृत
       दोनों विरोधी
       चुनाव है तुम्हारा
       चुन लेना जो चाहो 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भाव संक्षेप में |
    आशा

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  2. बहुत आभार ॠतु जी । ये तांका हैं-5+7+5+7+7=31 वर्ण के अनुसार ।

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  3. मुझे कविताओं की technical terms के बारे में कम ही ज्ञान है ..
    क्षमा चाहूंगी ..
    kalamdaan.blogspot.com

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    उत्तर
    1. ॠतु जी कोई बात नहीं । असली बात तो भाव की है । आपने जो भाव की सराहना की उसके लिए आपका बहुत आभार !

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  4. बहुत सुंदर और सार्थक आभिव्यक्ति...

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  5. त्रिवेणी के संपादक मंडल और इस पोस्ट पर आने वाले सभी साथियों का बहुत-बहुत आभार

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