गुरुवार, 28 जून 2012

सावन- गीत !


डॉ सरस्वती माथुर
 पुष्प झड़ता
फिर से खिल जाता
शुष्क जंगल
हरा भरा हो जाता
कोयल कूक
सावन को बुलाती
वर्षा बूंदे भी
ताल बजा के गातीं
मन के भाव
अल्पनाएँ रचते
घर- आँगन
मोहक -से लगते
झूले बैठके
नवयौवना गाती
भेजी क्यों नहीं
प्रिय ने प्रेम पाती
ठंडी फुहारें
परदेस से लाती
सन्देश "पी" का
तब पाखी- सा मन
चहचहाता
सावन के रसीले
मधुर गीत गाता !
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15 टिप्‍पणियां:

  1. सावन सा ही मनभावन चोका। डॉ सरस्वती माथुर को बधाई!

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  2. मनभावन सावन गीत लगा . बधाई .

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  3. ज्योत्स्ना शर्मा28 जून 2012 को 5:00 pm बजे

    बहुत सुन्दर रससिक्त चोका .....सरस्वती जी

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  4. बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण वह भी चौका में अति कठिन कार्य, बधाई

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  5. "मन के भाव
    अल्पनाएँ रचते
    घर- आँगन
    मोहक -से लगते "....सुंदर भावपूर्ण सावन की दस्तक देते शब्द ..बधाई सरस्वती जी ,
    ....बहुत रसीला सावन गीत !
    नीना दीवान

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  6. आपने तो बिलकुल भिगो दिया अपनी रचना से ...पर मुई बरखा ...अब तक नहीं पसीजी

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  7. सावन-गीत पसंद करने के लिए आप सभी की आभारी हूँ ...आभार हरदीपजी -हिमांशु भाई! आप सभी ऐसे ही स्नेह बनाये रखें !
    डॉ सरस्वती माथुर

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  8. सावन की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति......चौका बहुत सुन्दर है।
    रेनु चन्द्रा

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  9. सरस चोका
    भीगा है तन-मन
    बिन फुहार।
    कृष्णा वर्मा

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  10. बारिश को भी देखना चाहिए इस सुंदर चोका को...पर आने का नाम ही नहीं ले रही:)
    बहुत ही खूबसूरत रचना !!

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  11. सावन की फुहारों में भिगोता खूबसूरत चोका...बधाई...।

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