तुहिना रंजन
1
विधु-सी बाला सुन्दर ।
नैन उठाये जो
उमड़े मोहक सागर ।
2
नाच हिया उठता तब ।
रूठे मुखड़े पर
मुस्कानें खिलती जब ।
3
जीवन- मधुरिम सपने ।
जी लूँ जब तक ये
प्राण न निकलें अपने ।
4
बाबुल कह दे अब तो-
‘धन न पराया थी
दिल का टुकड़ा थी वो ।’
5
जो हर पल हैं बहते-
झरने औ' नदियाँ,
‘रुकना न कभी’ -कहते ।
-0-
"बाबुल कह दे अब तो..."
जवाब देंहटाएंसंवेदनाओ को तरंगित या यूँ कहूँ कि झकझोरती पंक्तियाँ...
कुँवर जी,
जो हर पल हैं बहते-
जवाब देंहटाएंझरने औ' नदियाँ,
‘रुकना न कभी’ -कहते
sundar... jeevan chalne ka hi to nam hai
अच्छे हैं ये माहिया!
जवाब देंहटाएंसुंदर माहिया। पहला और चौथा बहुत पसंद आए। बधाई तुहिना जी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (12-062012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंकृष्णा वर्मा
khubsurat mahiya...
जवाब देंहटाएंबाबुल कह दे अब तो-
जवाब देंहटाएं‘धन न पराया थी
दिल को छू गई...बहुत सुंदर...बधाई !!
बाबुल कह दे अब तो-
जवाब देंहटाएं‘धन न पराया थी
दिल का टुकड़ा थी वो ।’
एक बेटी के मन की पीड़ा सीधे मन तक पहुँची...बधाई...।
बाबुल कह दे अब तो-
जवाब देंहटाएं‘धन न पराया थी
दिल का टुकड़ा थी वो ।’
बहुत हीं सुन्दर .....