सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

पेड़ बहुत रोए ।


डॉ हरदीप कौर सन्धु
1
एक भी पत्ता
पीला हो मुरझाए
डाली से टूट जाए,
जान ले हाल
भीतर ही भीतर
पेड़ बहुत रोए ।
2
घर थे कच्चे
सब लोग थे सच्चे
हिल-मिल रहते
साथ निभाते
जीवन का शृंगार
बरसता था प्यार ।
3
आया अकेला
देखने यह  मेला
मिला साथ सुहाना
हँसा ज़माना
मेले में घूम-घूम
ढूँढ़ा सुख -खिलौना ।
4
मैं प्यासा राही
जीवन -सागर से
भरता रहा प्याले
प्यास बुझाऊँ
सागर भी शामिल
शामिल जग वाले ।
5
मेरी ये आत्मा
रंगीला उपवन
रंगीन तितलियाँ
मोह में रंगी
उड़ती यहाँ -वहाँ
खिली आशा कलियाँ ।
6
दोनों नदियाँ
वादियों में पहुँची
बनती एक धारा
अश्रु बहते
छलकी ज्यों अँखियाँ
दु:ख सब कहती ।
7
 पालने मुन्नी
माँ लोरियाँ सुनाए
मीठी निंदिया आए
यादों में सुने
लोरियाँ माँ का मन
दिखता बचपन
8
श्वेत व श्याम
दो रंग दिन-रात
अश्रु और मुस्कान
साथ-दोनों का
यहाँ पल-पल का
खेलें एक आँगन ।
9
तेरी अँखियाँ
ज्यों ही रुकी आकर
मन-दहलीज़ पे,
हुआ उजाला
जगमगाए दीए
मेरे मन-आँगन

-0-

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे सेदोका हैं...जीवन के कितने रंग आपने इनके माध्यम से नज़रों के सामने बिखेर दिए...। बहुत बधाई...।
    प्रियंका

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  2. पढ़ते हुए मन को भा गए सेदोका ...सटीक और सार्थक

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  3. ज्योत्स्ना शर्मा31 अक्टूबर 2012 को 12:28 am बजे

    जीवन दर्शन को समेटे बहुत प्रभावी सेदोका ...
    श्वेत व श्याम
    दो रंग दिन-रात
    अश्रु और मुस्कान
    साथ-दोनों का
    यहाँ पल-पल का
    खेलें एक आँगन ।.....बहुत सुन्दर ..बधाई !!

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  4. बहुत ही सुंदर सेदोका ! दूसरा और नौंवा -बेहद सुंदर !
    डॉ हरदीप कौर सन्धु को बधाई !

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  5. तेरी अँखियाँ
    ज्यों ही रुकी आकर
    मन-दहलीज़ पे,
    हुआ उजाला
    जगमगाए दीए
    मेरे मन-आँगन
    बहुत सुन्दर सेदोका। हरदीप जी बधाई।

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  6. "तेरी अँखियाँ
    ज्यों ही रुकी आकर
    मन-दहलीज़ पे,
    हुआ उजाला
    जगमगाए दीए
    मेरे मन-आँगन!"

    बहुत ही सुंदर मधुर सेदोका हैं !
    डॉ सरस्वती माथुर

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  7. बहुत सुन्दर सेदोका।
    हरदीप जी बधाई।
    Dr Saraswati Mathur

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