गुरुवार, 22 नवंबर 2012

धारा हूँ नदिया की


अनुपमा त्रिपाठी


छवि सुहाए
सूरतिया  पिया की
मनवा भाए
मूरतिया पिया की
नदिया हूँ मैं
सागर पियु मेरो
बहती जाऊँ
कथा सागर तक
कहती जाऊँ
पियु में समा जाऊँ
पीड़ा राह की
सकल सह जाऊँ ।

बन में ढूँढूँ
धारा- हूँ  जीवन की
घन  बिचरूँ
ज्यूँ धार नदिया की
कठिन पंथ
अलबेली -सी रुत
मोहे सताए
जिया नाहीं बस में
पीर घनेरी .
मनवा अकुलाए ।

बिपिन घने
मैं कित  मुड़  जाऊँ
पिया बुलाए
मन चैन न पाए  
बढ़ती जाऊँ
डगर चले मन
रुक ना पाए
अब कौन गाँव है
कौन देस है
नगरिया पिया की
रुक ना पाऊँ
कल- कल करती
बहती जाऊँ
छल -छल बहूँ मैं
सागर को  पा जाऊँ
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16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर.....
    बिल्कुल कल-कल करती नादिया सी बहती रचना... :)
    बधाई अनुपमा त्रिपाठी जी !
    ~सादर

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  2. चोका त्रिवेणी पर लेने हेतु बहुत आभार हरदीप जी एवं हिमांशु भैया जी ।

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  3. वाह!! काव्य सौन्दर्य से भरपूर रचना!!
    भाव अति सुंदर...अनुपमा जी को बहुत बहुत बधाई|

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  4. बहुत सुन्दर रचना।
    अनुपमा जी बधाई।

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  5. बहुत सुंदर .... कल कल छल छल सी बहती हुई ...

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  6. शब्दों की अविरल धारा में बहता काव्य सौन्दर्य | बधाई आपको |

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  7. छल -छल बहूँ मैं
    सागर को पा जाऊँ ।
    बहुत सुन्दर...बधाई...।
    प्रियंका

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  8. अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्‍यक्ति में ...

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  9. मन को शीतल जल की तरह ठंडी कर गयी आपकी यह प्रस्तुति. आपकी काव्य धारा ऐसे ही बहती रहे.

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  10. बहुत सुन्दर अनुपमा जी...

    अनु

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  11. काव्य सौंदर्य लिए गतिमान चौका . बधाई .

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  12. मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

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