रविवार, 23 दिसंबर 2012

बूझो तो मैं हूँ कहाँ ?



1-डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
अरे सूरज !
जाने कहाँ खो गया 
शीत सिहरा 
कोहरे की चादर 
ओढ़कर सो गया ।
2
दो मुठ्ठी धूप 
छिड़की यहाँ -वहाँ 
मेघ -रजाई 
छिप के पूछे रवि
बूझो तो मैं हूँ कहाँ ?
3
तुषार बिंदु 
टप टप टपके 
फूल पांखुरी 
भोर की पलकों पे 
ज्यूँ हों मोती अटके ।
-0-
2-अनिता ललित 
1
सर्द मौसम,
ठिठुरते हैं जिस्म,
देखो ईश्वर!
कँपकपाते हाथ।।।
ढूँढे तेरा निशान।।! 
2
शीत - लहर,
ढाए कैसा कहर
बेबस हुआ
ग़रीब का आँचल
तपे, ठंडी आस में !
3
सर्दी की धूप,
तेरी यादों के जैसी
गुनगुनाती
रोम-रोम को मेरे,
झंकृत कर जाती !
4
छाया कोहरा,
सर्द आहें भरते,
बेबस सभी ! 
खुदा तेरी आस के,
जलते अलाव हैं !
5
सर्दी क़हर !
रात बहुत भारी !
दिन भी रोया !
गरीब जो सोया, तो 
खुली ही रहीं आँखें ! 
-0-

7 टिप्‍पणियां:

  1. ज्योत्स्ना शर्मा24 दिसंबर 2012 को 12:58 am बजे

    सर्दी की गुनगुनी धूप जैसे बहुत सुन्दर ताँका ...बधाई अनिता जी

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  2. तुषार बिंदु
    टप टप टपके
    फूल पांखुरी
    भोर की पलकों पे
    ज्यूँ हों मोती अटके।
    ज्योत्स्ना जी बहुत सुन्दर ताँका

    सर्दी क़हर !
    रात बहुत भारी !
    दिन भी रोया !
    गरीब जो सोया, तो
    खुली ही रहीं आँखें!
    बहुत खूब कहा अनीता जी

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  3. ज्योत्स्ना जी ... सभी ताँका बहुत खुबसूरत !:-)
    मेरे ताँका को सराहने के लिए हार्दिक धन्यवाद !:)
    ~सादर!!!

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  4. कृष्णा वर्मा जी ... सराहना के लिए लिए हार्दिक धन्यवाद !:)
    ~सादर!!!

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  5. दो मुठ्ठी धूप
    छिड़की यहाँ -वहाँ
    मेघ -रजाई
    छिप के पूछे रवि-
    बूझो तो मैं हूँ कहाँ ?
    बहुत बढ़िया...|

    सर्दी क़हर !
    रात बहुत भारी !
    दिन भी रोया !
    गरीब जो सोया, तो
    खुली ही रहीं आँखें !
    मार्मिक...|
    दोनों को बधाई...|

    प्रियंका

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