रविवार, 6 जनवरी 2013

जीने की कला


कृष्णा वर्मा
1
कोमल काया
तू काँटों में अकेला
है अलबेला
आपदाओं से घिरा
जाने जीने की कला।
2
गुलाब पूछे,
अंग-संग काटों से-
क्यों सदा साथ
तू नाज़ुक बदन
 हम पहरेदार।
3
काँटे ही काँटे
तो भी सुगन्ध बाँटे
पुष्प गुलाब
दुश्वारियाँ सहके
महके दिन-रात।
4
जीने की तुम
सीखो कला जनाब
हँस के जिओ
कीचड़ में कुमुद,
ज्यों काँटों में गुलाब।
5
होंठों पे हँसी,
रहे चेहरा खिला,
कोई गिला,
शूलों संग पलता
तन कोमल तेरा।
 6
न तोड़ो हमें
रहने दो काँटों में
यारी हमें प्यारी
इनकी बदौलत
लम्बी उम्र हमारी।
-0-

4 टिप्‍पणियां:

  1. ज्योत्स्ना शर्मा6 जनवरी 2013 को 4:08 pm बजे

    सभी ताँका बहुत सुन्दर ...
    जीने की तुम
    सीखो कला जनाब
    हँस के जिओ
    कीचड़ में कुमुद,
    ज्यों काँटों में गुलाब।...बहुत प्यारे भाव लिए बहुत ही सुन्दर लगा |
    बधाई कृष्णा जी !

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  2. सभी ताँका बहुत खूबसूरत व अर्थपूर्ण ! बधाई कृष्णा वर्मा जी!:-) एक मेरी तरफ से भी...
    ~हैं रखवाले,
    कोमल गुलाब के..
    नुकीले काँटे..
    महफूज़ इन्हीं से
    दुनिया गुलाबों की...~
    ~सादर!!!

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  3. आपका ताँका बहुत मन भाया अनीता जी बहुत-२ धन्यवाद।

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  4. कोमल काया
    तू काँटों में अकेला
    है अलबेला
    आपदाओं से घिरा
    जाने जीने की कला।

    Bahut sundar abhivyakti...

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