रविवार, 24 फ़रवरी 2013

साँसों की डोर


तुहिना रंजन
1.
साँसों की डोर 
उलझी   कुछ  ऐसी  
छटपटाए  मन  
करो जतन 
अँधेरे  से उबारो 
शांतिमय हो अंत  
 2.
साधक तप  
इच्छा मृत्यु  वरण   
ध्यान  भजन  योग,
सात्विक अन्न 
संतुलन नियम  
श्वास श्वास जीवन  ।
 3
अनंत यात्रा  
स्थूल से सूक्ष्म तक  
वैतरिणी के पार 
देहावसान  
ब्रह्म में हो विलीन 
व्यक्ति बने समष्टि  
 4.
मौत ने छीने  
मधुर वो सपने  
जो देखे मैंने तूने  
कली न हँसी  
फूल भी मुरझा
विधि का लेखा हाय !!  
 5.
अंत नहीं ये  
सर्पीली सुरंग -सा  
जो चले निरंतर 
प्रकाश पुंज  
गहन निशा तले  
ले रहा पुनर्जन्म ।
-0-

7 टिप्‍पणियां:

  1. दार्शनिकता से भरे सेदोका बहुत अच्छे लगे...
    तुहिना रंजन जी को बधाई !!

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  2. गहन जीवन दर्शन को अभिव्यक्त करते सुन्दर सेदोका ...बहुत बधाई तुहिना जी
    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  3. हर दिन हम सबको इसी रास्ते जाना है....
    चिंतन-मनन ... अर्थपूर्ण सेदोका....तुहिना रंजन जी !
    ~सादर!!!

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  4. पूरा जीवन दर्शन है इनमे...बहुत अच्छे...बधाई...|

    प्रियंका

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  5. मौत ने छीने
    मधुर वो सपने
    जो देखे मैंने तूने
    कली न हँसी
    फूल भी मुरझाए
    विधि का लेखा हाय !!

    man ko sparsh kar gaya...bahut2 badhai....

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  6. बहुत सार्थक सेदोका।
    तुहिना जी बधाई।

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