रचना श्रीवास्तव
1
भर ही जाता
जीवन का आकाश
कभी रंगों से,
कभी बेनूर होता
ये खाली केनवास ।
2
बहुत कुछ
कोरी किताब पर
भर ही जाता
जीवन का आकाश
कभी रंगों से,
कभी बेनूर होता
ये खाली केनवास ।
2
बहुत कुछ
कोरी किताब पर
लिखना चाहा
हमने जब-जब
खत्म हो गई स्याही ।
हमने जब-जब
खत्म हो गई स्याही ।
3
इस जीवन
से कुछ नहीं चाह
पर न जाने
क्यों , बूँद-बूँद मेरी
उम्मीद पीता गया ।
4
उनके लिए
यह जीवन होगा
फूलों की सेज
हमको तो सोने को
ज़मीन भी न मिली ।
5
ज़िन्दगी पर
लिखी थी नज़्म मैंने
महकती थी
पर अब उसके
शब्द ढहने लगे हैं ।
इस जीवन
से कुछ नहीं चाह
पर न जाने
क्यों , बूँद-बूँद मेरी
उम्मीद पीता गया ।
4
उनके लिए
यह जीवन होगा
फूलों की सेज
हमको तो सोने को
ज़मीन भी न मिली ।
5
ज़िन्दगी पर
लिखी थी नज़्म मैंने
महकती थी
पर अब उसके
शब्द ढहने लगे हैं ।
-0-
भर ही जाता
जवाब देंहटाएंजीवन का आकाश
कभी रंगों से,
कभी बेनूर होता
ये खाली केनवास ।
ज़िन्दगी पर
लिखी थी नज़्म मैंने
महकती थी
पर अब उसके
शब्द ढहने लगे हैं ।
Inke baare men kya kahun laga ki dil udelkar rakh diya bas...hardik badhai...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति रचना जी,सादर आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ
जवाब देंहटाएंकोरी किताब पर
लिखना चाहा
हमने जब-जब
खत्म हो गई स्याही ।
बहुत खूबसूरत...बधाई...|
प्रियंका
बहुत सुंदर ज़िंदगी की किताब के चित्र...
जवाब देंहटाएं~सुंदर ताँका !
हार्दिक बधाई.... रचना श्रीवास्तव जी:)!
~सादर!!!
ज़िंदगी की कशमकश को बहुत खूबसूरती से बयान करने के लिए रचना जी को बधाई !
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी पर
जवाब देंहटाएंलिखी थी नज़्म मैंने
महकती थी
पर अब उसके
शब्द ढहने लगे हैं।
बहुत बढ़िया...रचना जी बधाई।
सभी ताँका बहुत भावपूर्ण ज़िंदगी-से...
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी पर
लिखी थी नज़्म मैंने
महकती थी
पर अब उसके
शब्द ढहने लगे हैं ।
बहुत बधाई.