डॉ• ज्योत्स्ना शर्मा
1
कल भीग गए नैना
चाहा था उड़ना
खामोश हुई मैना ।
2
टुकड़ों का मोल नहीं
माँ-बाबा खातिर
दो मीठे बोल नहीं ।
3
फूलों ने यारी की
थी बदनाम हवा
झरना लाचारी थी ।
4
है रात नशीली- सी
छेड़ गई मन को
इक याद रसीली -सी ।
5
बादल में चाँद छुपा
ये निर्मोही मन
मेरे रोके न रुका ।
6
कलियों की क्यारी थी
चटकी थी मन में
वो याद तुम्हारी थी ।
7
धड़कन ने छंद बुने
छलक गई गागर
जग रस-मकरंद चुने ।
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Gahan abhivykti hai aapke mahiya men ..meri bahut2 badhai...
जवाब देंहटाएंbahut sundar jyotsana ji sabhi mahiya sundar hai
हटाएंबहुत सुंदर, दिल को छूने वाले माहिया...!
जवाब देंहटाएंडॉ ज्योत्सना जी तथा इससे जुड़े हर रचनाकार को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ!
~सादर!!!
सभी माहिया बहुत सुन्दर...बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी माहिया दिल के करीब. ए बहुत ख़ास लगा...
जवाब देंहटाएंकलियों की क्यारी थी
चटकी थी मन में
वो याद तुम्हारी थी ।
बधाई.
डॉ. भावना जी ,शशि जी ,अनिता जी ,कृष्णा जी एवं डॉ. जेन्नी शबनम जी आपकी स्नेहमयी उपस्थिति मेरे मन को नई ऊर्जा से भर गई |
जवाब देंहटाएंसादर साभार
ज्योत्स्ना शर्मा