सोमवार, 8 अप्रैल 2013

धूप बनी बिखरी।


रचना श्रीवास्तव
1
ये रूप मिला निखरी
रोज उगे सूरज
मैं  धूप  बनी बिखरी।
2
तुम आए  क्या कहना  
साँसों ने पहना
हर खुशबू का गहना 
3
दुखने  लागी अखियाँ
बरसे  ये निस- दिन
जागें  सारी  रतियाँ  ।
4
विरहा की पँखियाँ
अब तो आजा तू
हँसती  सारी सखियाँ
  ।
5
जब भी बदरा बरसे
तू हर बूँद बसा
मनवा मोरा तरसे ।
6
तू  क्यों  नाही  आवे
निर्मोही तोहे
 मोरी याद न भावे ?  
-0-
2-शशि पुरवार
1
पीड़ा फिर  क्यों  भड़की ?
भाव  सभी सोए
खोली दिल की खिड़की
2
क्या पाप किया मैंने !
गरल भरा  प्याला
हर रोज़ पिया मैंने  ।
3  
कह दो मन की बातें
छूट  नहीं जाएँ
ममता की सौगातें  
-0-



3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भावपूर्ण माहिया!
    रचना जी, शशि जी... बधाई स्वीकारें!
    ~सादर!!!

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  2. बहुत सुन्दर माहिया।
    रचना जी, शशि जी बधाई।

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  3. इतने खूबसूरत माहिया के लिए बधाई स्वीकारें...|
    प्रियंका

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