सुदर्शन रत्नाकर
मीठी -सी याद
अब भी भीतर है
कचोटती है,
ठंडे हाथों का स्पर्श
होता है मुझे
हवा जब छूती है
मेरे माथे को
दूर होकर भी माँ
बसी हो कहीं
मन की सतह में,
आँचल तेरा
ममता की छाँव का
नहीं भूलता,
बड़ी याद आती है
जब बिटिया
मुझे माँ बुलाती है
जैसे बुलाती थी मैं ।
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माँ को नमन
जवाब देंहटाएंबड़ी याद आती है
जवाब देंहटाएंजब बिटिया
मुझे माँ बुलाती है
जैसे बुलाती थी मैं ।
waah bahut khoob ...!!
माँ की विरासत पा ली आपने !
जवाब देंहटाएंveri nice ...
जवाब देंहटाएंमाँ होने का यही तो गौरव है !
जवाब देंहटाएंदूर होकर भी माँ
जवाब देंहटाएंबसी हो कहीं
मन की सतह में,
बधाई .
भाव भरी रचना । सुन्दर
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण चोका .
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण चोका ! दिल भर आया...
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
जैसे बुलाती थी मैं ..... माँ
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्द ....
बहुत ही सुन्दर चोका ... बधाई :)
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण .....मोहक !!
जवाब देंहटाएंसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
मार्मिक...भावपूर्ण चोका के लिए बहुत बधाई...|
जवाब देंहटाएंप्रियंका