गुरुवार, 9 मई 2013

ताँका



डॉ अनीता कपूर
1.
उगायें, फिर  
रौशनी की फ़सल
चीर अँधेरा
बुनकर चटाई
ढकें खुली खिड़की।
2
हाँ, बेहयाई !
बिकने लगी आज
दुकानों पर
हया- शर्म से खुद
शर्मसार हुई है ।
3
यादों के गीत
जीवन -संगीत से
करो अलग
जिंदगी रेत नहीं
यादें सोख न पा

4
जीवन -शक्ति
फिर हुई सजीव
मौन मुखर 
बन गुलमोहर
पहन गुलमोहर ।
5
खड़ा अकेला
दृढ़ है जिजीविषा
जितना तपे
उतना ही निखरे
गुलमोहर तरु ।
-0-

5 टिप्‍पणियां:

  1. bahut saargarbhit taankaa ....
    खड़ा अकेला
    दृढ़ है जिजीविषा
    जितना तपे
    उतना ही निखरे
    गुलमोहर तरु ।..bahut sundar ..aisaa hii hai jeevan bhii ..badhaaii aapko !!

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  2. बहुत सुन्दर ताँका ! सजीव चित्रण !
    ~सादर!!!

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  3. wah bahut hi sundar tankaa ...
    जीवन -शक्ति
    फिर हुई सजीव
    मौन मुखर
    बन गुलमोहर
    पहन गुलमोहर ।
    5
    खड़ा अकेला
    दृढ़ है जिजीविषा
    जितना तपे
    उतना ही निखरे
    गुलमोहर तरु

    badhaayi .. sadar naman

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  4. खड़ा अकेला
    दृढ़ है जिजीविषा
    जितना तपे
    उतना ही निखरे
    गुलमोहर तरु ।

    बहुत सुन्दर।

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