मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

ढलती शाम

ताँका-
सुभाष लखेड़ा 
1
ढलती शाम 
बेचैन करे हमें   
जब वो बेटी 
बाहर गई है जो 
लेकिन नहीं लौटी।
2
ढलती शाम 
आँखों में आँसू लाए  
जब भी हमें  
याद उनकी आए, 
जिनसे धोखे खाए।    
-0-
माहिया-डॉ सरस्वती माथुर 
1
बोलो -कब  आओगे ?
डोली में अपनी
मुझको ले जाओगे ।
2
यादों की है डोली
अब तो आजाओ
तुम मेरे हमजोली

3 टिप्‍पणियां:

  1. आज के यथार्थ को कहते ताँका बहुत प्रभावी हैं ...और बहुत मधुर माहिया ..दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई !!

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  2. वास्तविकता व्यक्त करते सुन्दर ताँका ! सरस माहिया !
    सुभाष जी, सरस्वती जी बहुत-२ बधाई!

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  3. सोचने को मजबूर करते तांका और खूबसूरत माहिया के लिए हार्दिक बधाई...|

    प्रियंका

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