शनिवार, 21 जून 2014

सीली दीवारें



डॉ०भावना कुँअर
1
भीगे हों पंख
धूप से माँग लूँ मैं
थोड़ी गर्मी उधार,
काटे हैं पंख
जीवन का सागर
कैसे करूँ मैं पार !
 2
दे गया कौन
बनकर अपना
सौगातें ये जख़्मी-सी
मेरा जीवन
बना मकड़जाल- सा
साँसे  फँसी-मक्खी सी ।
3
भर रहीं हैं
मन भीतर बातें
तेरी वो सीलन- सी,
सीली दीवारें
टूटे - बिखरे किसी
ज्यों घर- आँगन की।
-0-

13 टिप्‍पणियां:

  1. विरह - पीड़ा की गहराइयों को छूते हुए सुंदर सेदको
    दीदी भावना जी हार्दिक बधाई .

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  2. भर रहीं हैं
    मन भीतर बातें
    तेरी वो सीलन- सी,
    सीली दीवारें
    टूटे - बिखरे किसी
    ज्यों घर- आँगन की।....भावपूर्ण सदोका

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  3. सभी सेदोका बहुत भावपूर्ण हैं भावना जी.....बधाई !

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  4. भीगे हों पंख ....सुंदर सेदोका है| सभी सेदोका में भाव बहुत सुंदर ढंग से चित्रित किये हैं |बधाई |

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  5. कटे पंख ...मकड़जाल ...और ..सीली दीवारें ..बेहद भाव पूर्ण अभिव्यक्ति ..
    मन को छू लेने वाले सेदोका ...बहुत बधाई भावना जी !!

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  6. behad bhaavpurn abhivyakti bhavnaji ...bhar rahi hai
    man bheetar baate......peeda liye saty....ati sunder...badhai.

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  7. बहुत सुन्दर...भावपूर्ण सेदोका...|
    हार्दिक बधाई...|

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