डॉ०भावना कुँअर
1
भीगे हों पंख
धूप से माँग लूँ मैं
थोड़ी गर्मी उधार,
काटे हैं पंख
जीवन का सागर
कैसे करूँ मैं पार !
2
दे गया कौन
बनकर अपना
सौगातें ये जख़्मी-सी
मेरा जीवन
बना मकड़जाल- सा
साँसे फँसी-मक्खी
सी ।
3
भर रहीं हैं
मन भीतर बातें
तेरी वो सीलन- सी,
सीली दीवारें
टूटे - बिखरे किसी
ज्यों घर- आँगन की।
-0-
विरह - पीड़ा की गहराइयों को छूते हुए सुंदर सेदको
जवाब देंहटाएंदीदी भावना जी हार्दिक बधाई .
वाह उम्दा
जवाब देंहटाएंsabhi sedoka bhavpurn hain .bhavna ji badhai.
जवाब देंहटाएंpushpa mehra.
भर रहीं हैं
जवाब देंहटाएंमन भीतर बातें
तेरी वो सीलन- सी,
सीली दीवारें
टूटे - बिखरे किसी
ज्यों घर- आँगन की।....भावपूर्ण सदोका
सभी सेदोका बहुत भावपूर्ण हैं भावना जी.....बधाई !
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंभीगे हों पंख ....सुंदर सेदोका है| सभी सेदोका में भाव बहुत सुंदर ढंग से चित्रित किये हैं |बधाई |
जवाब देंहटाएंSabhi ka bahut bahut aabhar...
जवाब देंहटाएंभावात्मक पंक्तियाँ...
जवाब देंहटाएंकटे पंख ...मकड़जाल ...और ..सीली दीवारें ..बेहद भाव पूर्ण अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंमन को छू लेने वाले सेदोका ...बहुत बधाई भावना जी !!
अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंbehad bhaavpurn abhivyakti bhavnaji ...bhar rahi hai
जवाब देंहटाएंman bheetar baate......peeda liye saty....ati sunder...badhai.
बहुत सुन्दर...भावपूर्ण सेदोका...|
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई...|