रविवार, 1 मार्च 2015

चुभते रिश्ते



डॉभावना कुँअर
1
काँटों पे चले
तक भी न की
ऐसे जिए थे हम,
सैलाब आया
सब बहा ले गया
उखड़े थे कदम।
2
चुभते रिश्ते
पल-पल मुझसे
कुछ माँगते रहे,
चुकाया सब
कीमत दे साँसों की
फिर भी रहा बाकी
3
लगी जो काई
रिश्तों पर हमारे
अब हटेगी कैसे ?
रूठ के बैठी
खुशियों की किरण
अब मनाएँ कैसे?
-0-

8 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िंदगी की सच्चाई से रूबरू करा देती हैं आपकी रचनाएँ... भावना जी ! दिल को गहरे छू गए आपके सेदोका।
    सुंदर, भावपूर्ण, मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आपको!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  2. चुभते रिश्ते
    पल-पल मुझसे
    कुछ माँगते रहे,
    चुकाया सब
    कीमत दे साँसों की
    फिर भी रहा बाकी।

    बहुत खूब सेदोका....बधाई भावना जी!

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  3. चुभते रिश्ते
    पल-पल मुझसे
    कुछ माँगते रहे,
    चुकाया सब
    कीमत दे साँसों की
    फिर भी रहा बाकी।
    bahan bahut khoob bahan sunder bhav
    rachana

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  4. बेहद भावपूर्ण ...मर्मस्पर्शी सेदोका !

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई भावना जी !!

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  5. भावना जी यह कटु सत्य है कि सर्वस्व होम करने पर भी रिश्ते बचाए नहीं जा सकते । जितना हम रिश्तों को निभाने में समर्पित होते हैं , वे और भी अधिक की माँग करने लगते हैं। साँसों की कीमत देकर भी उनको नहीं बचा पाते। यह सेदोका तो पूरे जीवन का दर्शन है-
    चुभते रिश्ते
    पल-पल मुझसे
    कुछ माँगते रहे,
    चुकाया सब
    कीमत दे साँसों की
    फिर भी रहा बाकी।

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  6. sundar ,marmsparshee v bhaavpurn prastuti ke liye badhai bhwna ji .

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  7. बहिन जी, सेदोका "चुभते रिश्ते..." बहुत ही उम्दा है | बधाई स्वीकारें |

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