गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

बंधन तो हैं मन के



ज्योत्स्ना प्रदीप
1
ये कैसे नाते हैं ?
गठबंधन पर भी
सब बँध ना पाते हैं
2
बंधन तो हैं मन के
बादल के आँसू
जीवन हैं हर तन के।
3
सरिता भी प्यार करे
मिलकर सागर में
इसका इज़हार करे ।
4
सागर में हैं मोती
लहरें भी  इसकी
नित मुख इनके धोती।
5
फूलों ने प्यार किया
धरती के तन का
जीभर शृंगार किया।
6
पाहन में बहुत अगन
चोट न दो उसको
झुलसा देगी कानन।
7
दिल मानव का रीता
भू ने रोकरके
आँचल में ली सीता।
8
हाँ, प्रीत यही होती
पर की पीड़ा में
आँखें  तेरी रोती।
 9
धरती का है सपना-
रवि के ले फेरे
करले उसको अपना।
-0-

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर माहिया ज्योत्स्ना जी ! विशेकर १ला व ८वाँ।
    हार्दिक बधाई आपको !

    ~सादर
    अनिता ललित

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  2. दिल मानव का रीता
    भू ने रोकरके
    आँचल में ली सीता।
    bahut sunder
    badhai
    rachana

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  3. dil manav ka reeta
    bhu ne ro karake
    anchal mein lee seeta.
    bahut sunder panktiyan hain.jyotsna ji badhai.

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  4. Bahut gahan Javab nahi hardik badhai...
    सरिता भी प्यार करे
    मिलकर सागर में
    इसका इज़हार करे ।

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  5. aap sabhi gunijano ne mujhe protsahit kiya hai ...hridy tal se abhaar...ABHAAR.

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  6. हाँ, प्रीत यही होती
    पर की पीड़ा में
    आँखें तेरी रोती।

    yahi satya hai...bohot hi lajawaab mahiye....

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  7. हाँ, प्रीत यही होती
    पर की पीड़ा में
    आँखें तेरी रोती।

    yahi satya hai...bohot hi lajawaab mahiye....

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  8. बहुत सुन्दर माहिया...| हार्दिक बधाई...|

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