मंगलवार, 5 मई 2015

भ्रम कुहासा



कृष्णा वर्मा
1
व्यक्ति बेमोल
फिर बिक जाता है
जीवन में सहसा
आस्था के हाथों
लालच स्वार्थ में या
बरबस प्यार में।
2
बिके मनुष्य
कभी अंध विश्वास
कभी मान्यताओं में
मोह या डर
ख़रीदा ही जाता है
फँस परम्परा में।
3
उमड़ आया
प्रेम के घुमड़ते
आभासी बादलों से
स्मृति छाया में
आँसुओं का सैलाब
तोड़ कोरों का बाँध ।
4
मरता मन
सजग जो कामना
चिंता बने सहेली
ठेल सत्य को
पाले भ्रम कुहासा
खाली रहे हथेली
5
मित्र बने तो
रहोगे हृदय के
जगमग कोने में,
बने दुश्मन
तो रहना पड़ेगा
शंकित मन-द्वार
6
जब तक कि
चलना न सीखा था
सँभालते थे लोग,
सँभला ज्यों मैं
गिराने की विधियाँ
सोचने लगे लोग।
7
व्याप्त भय हो
बढ़े ह्रदय गति
आ पसरेगा झूठ
घबराहट
बौखलाने लगती
साँसें हों रथारूढ़।
8
बिना बात ही
जिह्वा हो गई जड़
चेहरा परेशान,
सच उगलें
हाव-भाव कहीं
टँगी सूली पे जान।
9
तड़पे मन
प्रिय बिछुन से
तड़पें ज्यों किनारे
तिड़के मिट्टी
तड़पें मछलियाँ
सूखें नदिया धारे।
-0

11 टिप्‍पणियां:

  1. ekdam sahi kaha Krishna ji व्यक्ति बेमोल
    बिक जाता है … आस्था के हाथों, लालच स्वार्थ में या प्यार में

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  2. sabhi sedoka sedoka bahut hi achhe hain .krishna ji badhai
    pushpa mehra.

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  3. बहुत सुन्दर रचनाएं!
    कृष्णा जी अभिनन्दन!

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  4. बहुत सुन्दर रचनाएं!
    कृष्णा जी अभिनन्दन!

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  5. बहुत ही भावपूर्ण सेदोका ! विशेषकर-
    'जब तक कि
    चलना न सीखा था
    सँभालते थे लोग,
    सँभला ज्यों मैं
    गिराने की विधियाँ
    सोचने लगे लोग।' --बहुत अच्छा लगा !

    इस सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई कृष्णा वर्मा दीदी।

    ~सादर
    अनिता ललित

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  6. कृष्णा जी अति सुन्दर व्यक्ति के मोह डर का वर्णन करते सेदोका में उबर कर आयें है भाव।
    व्यापत हो भय बढ़े हृदय गति आ पसरेगा झूठ़ ... सांसें हो रथारूड़ जैसे कैमरे से फोटो खींच कर रख दी हो भय पूर्ण चेहरे की बहुत सुन्दर ।
    वधाई

    कमला घटाऔरा

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  7. जब तक कि
    चलना न सीखा था
    सँभालते थे लोग,
    सँभला ज्यों मैं
    गिराने की विधियाँ
    सोचने लगे लोग।SUNDER ,SATEEK V BHAAVPURN...SUNDAR RACHNAO KE LIYE HAARDIK BADHAI AADARNIYA KRISHNA JI KO

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  8. sundar bhaavon se bhare bahut sundar sedoka ...yathaarth kahate !!!

    haardik badhaaii aapako !1

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