मंगलवार, 2 जून 2015

ये बादल नवाबी



अनिता ललित

जेठ-आषाढ़ी-

ये बादल नवाबी

चले तनके

धरा से अकड़ते

जाने क्या पी के

उमस उगलते

धुंध झाड़ते

यहाँ-वहाँ लुढ़कें

धूप बीवी भी

परदा कर लेती

उबासी लेती।

बोझिल पलकों से-

कभी हौले से,

कभी कहे हँस के

"मेरे हुज़ूर!

सम्हलिये तो ज़रा !

ये नहीं कोई

ख़्वाबगाह आपका !

न रियासत

न ये वक़्त आपका।

अभी तो राजा

मेरे सूरज आका!

है तानाशाही

हुक़ूमत उन्हीं की।

उनकी आँखें

धरती पिघला दें

आग लगा दें।

हवाओं को भी बाँधे।

फिर आप क्या ?

ले जाएँ तशरीफ़

अभी तो आप!

पधारिएगा फिर

ले के सौगात -

रिमझिम फुहार

सावन-भादों साथ।

-0-

11 टिप्‍पणियां:

  1. भई वाह! क्या बात है, अनिता जी!
    'जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि … '

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  2. भावों और बिंबों का अनूठा मेल ... अनिताजी बहुत अच्छा लिखा है आपने ...धूप बीवी का परदे की आड़ में उलाहना देना मन को रंजित कर गया |
    बधाई शत शत |

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  3. वाह क्या बात है अनीता जी ,कितना मनमोहक वर्णन किया है आप ने अपनी इस कविता में |बादल को नवाब और धूप का परदे के पीछे से लजाना | सुन्दर व्याख्या |हार्दिक बधाई |
    सविता अग्रवाल"सवि"

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  4. वाह ! अनिता जी, धूप और सूरज का सुन्दर शब्दों में चित्रण | मानो धूप सकुचाई सी सूरज को अधिक तप्त होने पर उलाहना दे रही हो | बधाई आपको |

    शशि पाधा

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  5. बहुत सुन्दर मनोहारी सजीव चित्रण अनीता जी.....बहुत बधाई!

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  6. अरे अनिता जी, क्या कमाल का रूपक तैयार किया । नवाबी अन्तःपुर की बातें लिख कर आनंदित कर दिया।
    … अरे! हज़ूर ! सम्हलिये तो ज़रा। यह नही कोई ख्वाबगाह आप का। अति स्वभाविक वार्तालाप।
    बहुत बधाई। आशा है इतनी मनमोहक और रोचक रचनायें और भी पढ़ने को मिलती रहेंगी।

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  7. प्रिय सखि अनिता ललित ....

    वाह वाह जी ...
    क्या कहने आपके ..
    लिखा आपने ..
    मधुर ,मनोहर ..
    मोह लिया है
    यूँ ह्रदय हमारा
    अब क्या कहें
    बहुत प्यारा प्यारा !
    शुभ कामना
    स्वीकार करिएगा ..
    आभार भी हमारा !!!!!:)

    सस्नेह
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  8. जब यह चोका लिखा था तब लगा नहीं था.. कि 'नवाबी बादल' और 'धूप बीवी' सबका मन मोह लेंगे... :-)
    आप सभी सुधीजनों का हृदय से आभार एवं धन्यवाद । :-)

    ~सादर
    अनिता ललित

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  9. बहुत बढ़िया...ऐसे मनोहारी चित्रण के लिए बधाई स्वीकारें...|

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