बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

647-याद -परिन्दे



डॉभावना कुँअर

याद- परिंदे
निश्चित तिथियों में
बिन बुलाए
न जाने क्यूँ आ जाते,
और फिर क्यूँ
लगते कुरेदने
पैनी चोंच से
वर्षों से छिपा रखी
मन कोने में
खट्टी मीठी यादों को?
जाने क्यूँ फिर
उधेडने लगते
ऊन से बने
स्वेटर की तरह
सँजोए गए
सुनहरे ख़्वाबों को
जिन्हें रखा हो
बड़े ही जतन से
बक्से में दबा
अगले बरस को ।
निकाल लेते
बिना कुछ पूछे ही
छिपे पुलिंदे
जिन पर छपा है
वो हर लम्हा
जो छिपाया था कभी
बेदर्द और
जालिम दुनिया से।
उतर आते
बिन कहे आँखो में
गुलाबी डोरे
औ खुल जाती पोल
पल भर में
जान ही जाते सभी
भोले मासूम
हम तो हैं यादों के
परिंदों के ही मारे।
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15 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा भावना जी ऐसे ही होते हैं यादों के परिंदे।बहुत खूबसूरत। बधाई

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  2. याद परिन्दे.... तस्वीर की मानिन्द बेतरह ख़ूबसूरत कृति!
    '… उतर आते
    बिन कहे आँखो में
    गुलाबी डोरे
    औ खुल जाती पोल…'
    ऐसा ही है सच!! भावना जी, शुभकामनाएं!

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  3. उधेडने लगते
    ऊन से बने
    स्वेटर की तरह!!

    वास्तविकता का सटीक वर्णन

    बढिया सृजन!!

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  4. याद-परिन्दे कब सुनते किसी की
    करते अपनी ही मन-मर्ज़ी !!!
    सुंदर एवं भावपूर्ण चोका भावना जी !
    हार्दिक बधाई !

    ~सादर
    अनिता ललित

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  5. निकाल लेते
    बिना कुछ पूछे ही
    याद पुलिंदे। बहुत सुंदर भावपूर्ण चोका। बधाई।

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  6. laajvaab haaiga
    चोका में गागर में सागर भर दिया .
    बधाई .

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  7. अति सुन्दर भावपूर्ण चोका.....बधाई भावना जी।

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  8. (14 /10 /15 ) यादों के परिंदे डा.भावना कुँअर जी खूबसूरत रचना है। बधाई।

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  9. Aap sabhi ka bahut bahut aabhar mere bhav aap tak pahuchen yun hi sneh banaye rajhiyega...

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  10. बिन कहे आँखो में
    गुलाबी डोरे
    औ खुल जाती पोल…..bahut pyara !'yaadon ki sachchaie ka khoobsurat chitran....badhai hai aapko bhawna ji

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  11. भावना जी याद परिंदे ....बहुत सुन्दर और भावपूर्ण चोका रचा है |हार्दिक बधाई |

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  12. कितना खूबसूरत चोका...एक एक शब्द जितना दिल से लिखा, वो उतना ही अपने अर्थ में पाठक के दिल तक जा पहुंचा...|
    मेरी हार्दिक बधाई...|

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