सोमवार, 12 अक्टूबर 2015

यादें प्रियतम की



 मंजूषा 'मन'
1
जाता हूँ -कह देता
इतने से ही बस
दिल गम ये सह लेता।
2
गूगल से साभार
ये बूँदे शबनम की
मेरे  आँसू हैं
ये यादें प्रियतम की। 
3
क्यों आँसू पीते हैं
आओ हम दोनों
अब मिलकर जीते हैं।
4
पंछी को उड़ जाना
देश पराये से
फिर लौट नहीं आना।
5
कलियाँ जो खिलतीं हैं
दो ही दिन में ये
माटी में मिलतीं हैं। 
6
धरती ये प्यासी है
बरसा जो पानी
अब दूर उदासी है।
7
तुम मिलने आ जाना
मेरे मन मंदिर
इक दीप जला जाना।
8
नदिया ये बहती है
ऐसा ही जीवन
जीने को कहती है।
9
आँखों में भोर हुई
भीगी-भीगी सी
पलकों की कोर हुई।
10
रो -रो ये रात ढली
तेरी यादों की
अँसुअन- बारात चली।
11
मुँह पर तो थे ताले
तेरी आँखों ने
सब किस्से कह डाले।
12
आँखें पढ़ कर जाना
गैर नहीं है तू
तू जाना पहचाना।
-0-

13 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द की ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति ! सभी माहिया बहुत सुंदर !
    हार्दिक बधाई मंजूषा मन जी !

    ~सादर
    अनिता ललित

    जवाब देंहटाएं
  2. मंजूषा जी बहुत अच्छे माहिया लिखे आपने । हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. मँजुषाजी बहुत सुंदर माहिया। बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर माहिया, मञ्जूषा जी शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  5. कलियाँ जो खिलतीं हैं
    दो ही दिन में ये
    माटी में मिलतीं हैं।


    लाजवाब !!!

    बधाई!! सत्य कथन
    प्रत्यक्ष से परोक्ष वाह!!

    जवाब देंहटाएं
  6. sabhi mahiya bahut hi sunder hain. manjushha ji badhai.
    pushpa mehra

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति सभी माहिया बहुत अच्छे लगे मंजूषा जी....बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  8. रो -रो ये रात ढली
    तेरी यादों की
    अँसुअन- बारात चली।

    bahut achhe hain sabhi mahiya ye bahut achha laga..meri badhai...

    जवाब देंहटाएं
  9. आभार ! आप सभी बहुत बहुत आभार। यूँ ही प्रेरणा देते रहें।

    साथ बनाये रखें।

    जवाब देंहटाएं
  10. कलियाँ जो खिलतीं हैं
    दो ही दिन में ये
    माटी में मिलतीं हैं।
    sabhi mahiya bahut pyare lage ....sundar sateek ..jeevan ki dard bhari sachchai ko
    kahte.........manjusha ji ...badhai !

    जवाब देंहटाएं
  11. मुँह पर तो थे ताले
    तेरी आँखों ने
    सब किस्से कह डाले।
    बहुत सुन्दर...| सभी माहिया बहुत बेहतरीन लगे...मेरी हार्दिक बधाई...|

    जवाब देंहटाएं