गुरुवार, 8 अक्टूबर 2015

मन शिल्पी- सा



सेदोका
डॉ सरस्वती माथुर
1
मन शिल्पी- सा
गढ़ता  रहता क्यों
चित्र नये पुराने,
रंग भरे तो
लगे पहचाने से
रिश्तों के ताने बाने
2
बचपन था
कागज की नाव में
बैठ पार जा लगा,
शब्दरहित
लहरें सैलाब -सी
मन को डूबो गईं।
3.
विक्षुब्ध मन
जीवन -अरण्य में
अतृप्त- सा डोलता,
जाने क्या सोच
वैरागी सा होकर 
सारे रा खोलता l
4॰
मन टापू है
भूले बिसरे लोग
यादों की नावों पर
उदासी ओढ़
धुआँई छाया- से
गुजरते जाते हैं l
5
धूप का डोरा
खींच- सूर्य रंग के
मटमैली हो संध्या
सागर पर
फूल- सी खिलती है
धरा से मिलती है !
-0-


9 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद सुन्दर सेदोका!
    डॉ. सरस्वती माथुर को शुभकामनायें!

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  2. सरस्वती जी बहुत अच्छे सेदोका। बधाई।

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  3. धूप का डोरा
    खींच- सूर्य रंग के
    मटमैली हो संध्या
    सागर पर
    फूल- सी खिलती है
    धरा से मिलती है !
    अति विशेष
    सभी लाजवाब

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  4. सभी सेदोका बहुत सुंदर। बधाई।

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  5. क्षुब्ध मन
    जीवन -अरण्य में
    अतृप्त- सा डोलता,
    जाने क्या सोच
    वैरागी सा होकर
    सारे राज़ खोलता l


    डॉ० साहिब !बहुत खूब !

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  6. मन टापू है
    भूले बिसरे लोग
    यादों की नावों पर
    उदासी ओढ़
    धुआँई छाया- से
    गुजरते जाते हैं l

    ye bahut pasand aaya hardik badhai...

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  7. बहुत सुन्दर भावपूर्ण सेदोका !

    हार्दिक बधाई डॉ. सरस्वती जी !!

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  8. डॉ सरस्वती जी बहुत सुन्दर सेदोका की रचना की है |हार्दिक बधाई |

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  9. मन शिल्पी- सा
    गढ़ता रहता क्यों
    चित्र नये पुराने,
    रंग भरे तो
    लगे पहचाने से
    रिश्तों के ताने बाने ।
    बहुत सुन्दर सेदोका...हार्दिक बधाई...|

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