शनिवार, 21 नवंबर 2015

658

शशि पाधा
1
बहुत सोचा
अब नहीं छेड़ूँगी
मन का तल
बहुत गहरे में
रहने दूँगी
वहाँ रखी निधियाँ
तेरी यादों की
बीते पलों का सुख
साँसों की खुश्बू
तरल अधरों की  
गीत गुंजन
बरसों तक सहेजी
हमारी प्रीत
क्यों डरता है मन
कहीं सेंध न लगे |
2
घेरती रही
हमें परम्पराएँ
बाँधती रहीं
कुल की मर्यादाएँ
झेलती रही
दंश, अवमानना
आँचल बाँधी
सारी अवहेलना
सर झुकाए
बीन ली वर्जनाएँ
अब की बार
तुम ज़रा लिखना
नियम सूची
पुरुषों के लिए भी
समाज की तख्ती पर

-0-

7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह शशि जी नारी मन की पीड़ा को क्या उकेरा है। बधाई

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  2. शशि जी बहुत भावपूर्ण चोका रचे हैं नारी के लिए ही सारी मर्यादाएं पुरुष के लिए भी नियम होने चाहिए नारी मन के भावो का सुन्दर चित्रण है बधाई हो.

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  3. bahut gahan bhaav liye choka likha hai bahut- bahut badhai shashi ji !

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  4. पहला चोका जहाँ प्रेम की कोमलता से परिपूर्ण है, वहीं ये दूसरा चोका समाज को उसका आईना दिखाता है...|
    तुम ज़रा लिखना
    नियम सूची
    पुरुषों के लिए भी
    समाज की तख्ती पर ।
    बहुत खूबसूरत...| मेरी हार्दिक बधाई...|

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