रविवार, 28 फ़रवरी 2016

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शशि पाधा
1
वासंती रुत आई
पाहुन आयो ना
मन -बगिया मुरझाई।
2
कोयल से पूछ ज़रा
तेरे गीतों में
क्यों इतना दर्द भरा।
3
रंगों के मेले में
आँखें ढूँढ रही
चुपचाप अकेले में।
4
यह किसकी आहट है
द्वारे खोल खड़ी
मिलने की चाहत है।
5
अब कैसे पहचानूँ
बरसों देखा ना
अब आओ तो जानूँ।
6
पुरवा कुछ लाई है
पंखों से बाँधी
इक पाती आई है।
7
खुशबू सौगात हुई
धरती अम्बर में
फूलों की बात हुई।
8
नयनों में आँज लिये
प्रीत भरे आखर
गजरे में बाँध लिये।
9
शर्मीली गोरी है
नीले नयनों में
लज्जा की डोरी है।
10 
कँगना कुछ बोल गया 
साँसें मौन रहीं
तन मन कुछ डोल गया।
-0-

10 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर माहिया ! मनमोहक प्रस्तुति! हार्दिक बधाई शशि जी !!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  2. बहुत ही सुंदर सभी माहिया ! दिल के हर कोने को छू गए।
    इस मोहक प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई शशि जी !!!

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  3. शशि जी बसंती हवाओं और प्रीत के रंग में रंगे मनमोहक माहिया रचने पर हार्दिक बधाई ।

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  4. bahut sundar mahiya likhe aapne..mujhe ye bahut achha laga..

    कोयल से पूछ ज़रा
    तेरे गीतों में
    क्यों इतना दर्द भरा।

    bahut bahut badhai...

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  5. विरह-मिलन की सुगंध से भरे सुन्दर वासंती माहिया !
    हार्दिक बधाई शशि दीदी !!

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  6. आप सब स्नेही मित्रों का ह्रदय से आभार |

    शशि पाधा

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  7. बेहतरीन माहिया के लिए बहुत बधाई...|

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