गुरुवार, 12 मई 2016

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कमला निखुर्पा
1
झरे फुहार
झमक झमा झम
सिहर उठी धरा ।
बिहँसे मेघ 
धूसरित वसन
दमक लहराया ।
2
नभ- मंडप
थिरकती चपला
बज उठे नगाड़े ।
मेघ साजिंदे
बूँदों की थाप संग
झूम के तरु गाएँ
-0-

10 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रकृति चित्रण .
    बधाई

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  2. बहुत खूबसूरत सेदोका कमला जी...बधाई!

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-05-2016) को "कुछ कहने के लिये एक चेहरा होना जरूरी" (चर्चा अंक-2341) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. कमला जी बहुत सुन्दर सेदोका के लिए हार्दिक बधाई |सेदोका नंबर २ बहुत पसंद आया |

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  5. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  6. 'बरसे मेघ
    धूसरित वसन
    दमक लहराया'|'बूँदों की थाप संग
    झूम के तरु गायें|'वर्षा का चित्र खींचती सुंदर अभिव्यक्ति के लिए कमला जी बधाई |

    पुष्पा मेहरा

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  7. वर्षा का सुंदर ,सजीव चित्रण ..हार्दिक बधाई कमला जी !

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  8. बहुत सजीव चित्रण हैं | इतने अच्छे सेदोका के लिए मेरी बधाई स्वीकारें...|

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