कमला घटाऔरा
जिज्ञासु
कैसे जन्मते ही बच्चा
भूख लगने पर रोना शुरू कर देता है । धीरे धीरे बड़ा होने पर वह करवट लेना ,घुटने के
बल चलना और और खड़ा होना सीख लेता है । उसका जिज्ञासु मन फिर धीरे धीरे अन्य चीजों
को उठाकर हिला कर देखता है । हिलाता है ,छनकाता है
। ध्वनि से परिचित होता है । ...कुदरत ना जाने कितने गुणो से सजा कर प्राणी को
पृथ्वी पर भेजती है हमें हैरान करने वाले , पर हम अपने
में व्यस्त उस ओर कभी ध्यान ही नहीं देते । इसी तरह बच्चों की दुनिया भी हैरान
करने वाले कामों से भरी होती है । जब वह इधर आता है तो यही सब करता है । कभी इस
कमरे से उस कमरे में जाता है ।अब उसे पैर लग गए हैं ।वह भागता है । दौड़ता है , कभी रसोई की अलमारियाँ खोलकर एक एक शीशी निकालता है
। मुझे लाकर देता है । फिर वहीं रख देता है । कारपेट पर सिलाई करते समय नीचे गिरा
धागा भी उठाकर मेरे हाथ में धर देता है । हफ्ते बाद जब भी उसे आना होता
है । उस की पहुँच में आने वाली नुकसानदेह एक एक
चीज उठा कर ऊँची जगह रखनी पड़ती है । उसकी तेज निगाह और कुछ शरारती वृत्ति सब कुछ देखना परखना चाहती है । मेरा आईपैड तो पहले तलाश करता
है ।मेरी उंगली पकड़ कर कहने लगा है आईपै'(ड) । इसबार आया तो बेड के साथ रखी छोटी अलमारी का दराज़ खोलिकर टेबुल पर रखने वाली छोटी घड़ी निकाल ली , जिसके साथ लगा ढक्कन खोल दो
तो स्टैंड का काम भी करता है । वह घड़ी को खोलने बंद करने लगा । मैं पास बैठी उसकी
नन्हीं -नन्हीं उंगलियों के करतब देख रहीं थी । मैंने उसका
ध्यान बँटाकर घड़ी छुपा दी । वह अब रेडियो का स्विच ऑन -ऑफ करने लगा । मैं पीछे भागती तो फिर कुछ उठा लेता । टीवी का रिमोट उठा लेता । उधर से हटाती तो लैंड लाइन का बटन
दबा कर मैसेज सुनने लगता । जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है शायद इसी तरह उसकी
शरारतें बढने लगती हैं या फिर यह गुण सिर्फ लड़कों में ही अधिक होता है ; क्योंकि मैंने अपनी बेटियों में यह गुण नहीं देखा । ना बिना
पूछे उन्हें किसी के घर जाकर किसी चीज़को छूने की अनुमति दी । यहाँ तक कि मैंने भी अब नई चीज़ें घर में आने
पर ,जैसे
डीजिटल टीवी , लैप टॉप ,आई पैड या
डिज़िटल रेडियो आदि सब पूछ समझकर ही हाथ लगाया ,चलाना सीखा
। लेकिन यह नन्हा मुन्ना है कि जैसे सब सीख कर ही धरा पर आया है ।...
बात उस छोटी सी घड़ी की
कर रही थी । उस के जाने के बाद मैंने उसे खोल कर टेबुल पर रखना चाहा; लेकिन मुझ से खुल ही
नहीं रही थी । पता नहीं वह कैसे खोल -बंद कर रहा
था । उंगली बीच में आने पर आसानी से निकाल लेता था । मैंने
काफी कोशिश की पर खुली ही नहीं । न मेरे हाथो के स्पर्श को वह खोलने वाला कट मिला ना आँखों को ।
हार मानकर मैंने पति के हाथों में थमा दिया खोलने के लिए । नन्हीं उंगलियो की उस कला को समझने के लिये मुझे आँखें
लगानी पड़ी । ऐनक लगा कर देखा तो वह आधे सेंटी मीटर जितना ढकन का कट दिखा । अपनी
इस घटी दृष्टि पर मैं नन्हें से हार मन ही मन शर्मिन्दा हो कर रह गई ।
अनंत ज्ञान
छुपा है अन्तर में
जिज्ञासु जाने ?
-0-
कमला जी बालमन का सुंदर वर्णन हार्दिक बधाई आदरणीया
जवाब देंहटाएंवास्तव में बच्चे जिज्ञासु होते हैं। सुंदर हाइबन कमलाजी।
जवाब देंहटाएंछोटे बच्चों की आँखें तो मन के अन्दर भी झाँक कर सब देख-पढ़ लेती हैं ! :-)
जवाब देंहटाएंरोचक विवरण नन्हीं चंचलताओं का ! हार्दिक बधाई आ. कमला जी !!!
~सादर
अनिता ललित
बालमन की बाल हरकतें ही तो बचपन हैं ...तभी तो सब ढूँढते हैं बचपन...खूबसूरत हाइबन...बधाई आदरणीया
जवाब देंहटाएंसुन्दर हाइबन, छुटपन की चपलता का बहुत प्यारा वर्णन कमला जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर , सहज प्रस्तुति ! हार्दिक बधाई आदरणीया कमला जी !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आप सब सहृदय पाठकों के विचार पढ़ कर ।हम नन्हें बच्चों की हरकतों में जैसे खुद को ही जी रहे होतें हैं और आँखों को आनन्दित कर रहें होतें हैं । जीवन के ये अमूल्य पल बस बचपन को ही नसीब होते है । बड़े होने पर तो जीवन की संघर्ष गाथा शुरू हो जाती है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !बहुत प्यारा वर्णन बालमन का ! हार्दिक बधाई आदरणीया कमला जी !!
जवाब देंहटाएंअनायास ही जाने कितनी यादें जगा गया ये हाइबन...मेरे अपने बेटे के बचपन की...| मन मोह लिया आपने...| बहुत बधाई...|
जवाब देंहटाएं