रविवार, 6 नवंबर 2016

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1-रेखा रोहतगी
1
तू सच -सच बतलाना
उसमें क्या देखा
जो तुझको है जाना ।
-0-
rekhrohatgi@gmail.com
-0-
2-सुशील शर्मा
1
अनुभूतियाँ
प्रेम-संवेदनाएँ
मन का सुख
आंतरिक आनंद
प्रेम में ही विश्वास।
2
कड़वे बोल
दुःखद स्मृतियाँ
अप्रिय बातें
सजग हो दुखातीं
अंतस को सतातीं।
3
असफलता
अक्सर नापती है
हमारी छाती
दर्द की नींव पर
सफलता की
बाँग
4
तेरा निज़ाम
सना है सन्नाटे से
मरता सच
कराहता विश्वास
नहीं है कोई आस।
5
सच की मंडी
खूँटी पर लटका
बिकता सच
सच के मु
खौटों में
झूठ
- भरे चेहरे।
6
मुख़ौटा फेंक
असलियत दिखा
कुछ न छुपा
पीठ पर न मार
सीने पे कर वार।
-0-

9 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय काम्बोज सर जी
    सादर नमन !
    मेरे प्रथम प्रयास में लिखे माहिया को यहाँ स्थान देकर मेरा उत्साह बढाया और मात्रा संबंधी मेरी शंकाओं को निर्मूल किया जिसके लिए मैं हृदय से आपकी आभारी हूँ ।

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  2. माहिया और तांका सभी बहुत सुन्दर। रेखा जी, सुशीला जी आप दोनों को बहुत बधाई!

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  3. रेखा जी ,सुशील जी बहुत सुंदर सृजन हार्दिक बधाई आप दोनों को

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  4. रेखा जी ,सुशील जी भावी शुभकामनाएं...

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  5. माहिया और तांका सभी खूबसूरत हैं भावों का सुन्दर दर्शन हैं हार्दिक बधाई आप दोनों को |

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  6. माहिया और तांका बहुत सुन्दर भावों से पूर्ण हैं हार्दिक बधाई आप दोनों को |

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  7. भावप्रणव माहिया एवं वैसे ही सुंदर तांका । बधाई रेखा जी सुशील जी सुन्दर सृजन के लिये ।
    सनेह विभा रश्मि

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