मंगलवार, 15 नवंबर 2016

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1-मंजूषा मन
1
टूटे सपने
सँभले न हमसे
रूठे अपने
मना -मना के हारे
टूटे मन के तारे।
2
कुछ नया- सा
रचना जो चाहें तो
साथ न मन,
रूठ जाए भावना
पूरी न हो कामना।
-0-
2-रेखा  रोहतगी
1
पगली, अलबेली है
कौन इसे बूझे
तकदीर पहेली  है ।
2
रब क्यों न कहूँ तुझको
 
तू ही सब करता
यश मिलता है मुझको ।
3    
क्यों मन है घबराता
साँझ ढले ही जब
तू लौट नहीं आता ।
4      
तू दिल में रहता है
आँखों से फिर भी
क्यों झरना बहता है ।
-0-

12 टिप्‍पणियां:

  1. मंजूषा जी और रेखा जी दोनो की ही रचनाऐं बहुत सु्न्दर । रेखा जीके माहिया दिल को छूने वाले हैं। बधाई।

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  2. सभी रचनाएं उत्कृष्ट हैं
    बधाई

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  3. मंजूषा जी बहुत बढ़िया तांका और रेखा जी बहुत उम्दा माहिया! आप दोनो को बहुत बधाई।

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  4. रेखा जी के माहिया और मंजूषा जी की रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं | आप दोनों को बधाई |

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  5. रेखा जी सुंदर माहिया
    मन जी दिल की बात....

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  6. मंजूषा जी और रेखा जी सुन्दर भावों से पूर्ण तांका और माहिया के सृजन पर हार्दिक बधाई स्वीकारें |

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  7. मन को छू लेने वाले ताँका एवं माहिया !
    हार्दिक बधाई मंजूषा जी व रेखा जी !!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  8. मंजूषा जी बहुत सुंदर सृजन
    रेखा जी बहुत सुंदर माहिया अति सुंदर

    हार्दिक बधाई आप दोनों को

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  9. कुछ नया- सा
    रचना जो चाहें तो
    साथ न मन,
    रूठ जाए भावना
    पूरी न हो कामना।

    जाने क्यों होता है ऐसा...अक्सर...| बहुत सटीक बात है...| हार्दिक बधाई...|

    पगली, अलबेली है
    कौन इसे बूझे
    तकदीर पहेली है ।

    सच में, ये पहेली तो आज तक न सुलझी किसी से...| बहुत बधाई...|

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. मन को छू लेने वाले ताँका एवं माहिया !
    हार्दिक बधाई मंजूषा जी व रेखा जी !!!

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