गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

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सुशीला शिवराण
1.
आज छज्जे पे
चहकी है ज़िंदगी
मुद्दतों बाद
खिल उठा एकांत
पाकर एक संगी।      
2.
आशा की डोरी !
तुम टूट न जाना
सोए सपने
ले रहे हैं जम्हाई
जीवन पलने में।
3.
टूटी भी नहीं
बात बनी भी नहीं
भ्रम ने पाले
जलती सड़कों पे
कुछ भीगे सपने।
4.
यूँ ही अक्सर
छू लेती हूँ अक्षर
तेरी यादों के
यूँ भी छुआ है तुझे
हाँ, यूँ जिया है तुझे।
       

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19 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत चिंतन..आ.सुशीला जी

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  2. क्या बात है ! सब एक से बढ़ कर एक पर ये वाला बहुत अच्छा लगा-
    टूटी भी नहीं
    बात बनी भी नहीं
    भ्रम ने पाले
    जलती सड़कों पे
    कुछ भीगे सपने।

    हार्दिक बधाई...|

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  3. आदरणीय कांबोज भैया सहित सभी का हार्दिक आभार।

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  4. सुंदर भावपूर्ण ताँका !
    हार्दिक बधाई सुशीला जी !!

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  5. बहुत बहुत बधाई !
    भावभीने ताँका

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  6. सुशीला जी बहुत सुन्दर भाव पूर्ण तांका हैं ।बधाई ।
    टूटी भी नहीं / बात बनी भी नहीं / भ्रम ने पाले / जलती सडकों पे / कुछ भीगे सपने ।बहुत मोहक लगा ।

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  7. सुंदर एवँ भावपूर्ण ताँका !
    हार्दिक बधाई सुशीला जी !!

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