मंगलवार, 15 अगस्त 2017

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परमजीत कौर 'रीत'
1
खामोशी कहती है
यादें सावन बन
आँखों से बहती हैं
2
आँगन के फूलों की
याद बहुत आ
नानी-घर झूलों की
3
नभ को तकती नजरें
पाँव धरा पे जो
मंजिल थामे बाहें
4
क्या खोना ,क्या पाना
अपनों के बिन ,जी!
क्या जीना,मर जाना
-0-kaurparamjeet611@gmail.com

-0-

8 टिप्‍पणियां:

  1. क्या खोना ,क्या पाना
    अपनों के बिन ,जी!
    क्या जीना,मर जाना।

    अपनों के बिन, जी

    सुंदर प्रयोग।
    अच्छे माहिया, बधाई।

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  2. बहुत सुन्दर माहिया, बधाई परमजीत जी.

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  3. आँगन के फूलों की
    याद बहुत आए
    नानी-घर झूलों की

    हाँ सच्ची, कितना कुछ याद आता है ऐसा...| भावपूर्ण और बेहतरीन माहिया के लिए आपको बहुत बधाई...|

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  4. उम्दा भावपूर्ण माहिया परमजीत जी बहुत बधाई आपको।

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  5. सुन्दर माहिया रचे परमजीत जी ।बहुत भाये ।

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  6. सुन्दर माहिया ..हार्दिक बधाई !

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  7. भावपूर्ण माहिया परमजीत जी.. बहुत बधाई!!

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  8. मनभावन माहिया परमजीत जी ।ढेर बधाई ।
    क्या खोना ,क्या पाना
    अपनों के बिन ,जी!
    क्या जीना,मर जाना ।

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