मंजूषा मन
०
तुम मन को भाते हो
मन में बसकर तुम,
कितना इठलाते हो?
०
पहले ना खबर हुई
मन में आप बसे,
तब मुश्किल जबर हुई।
०
सन्नाटा गहरा था
तेरे आने से
टूटा हर पहरा था।
०
जन्मों तक तुम मिलना
मेरे मन बस कर,
तुम फूलों से खिलना।
०
होता जो अच्छा है
तुम विश्वास करो
ये रिश्ता सच्चा है।
-0-
mnjusha ji ka Mahiyaa bhut hi sundr laga. thode se shbdon men sab kuchh kaise kaha jataa hai aapne Kavi Viharee laal ko bhii koson peechhe chhod diyaa hai. Mdhur bhvone ke lie badhaaee. Shiam Tripathi Hindi Chetna
जवाब देंहटाएंShiam जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद.. आपने माहिया पसन्द किये और अपने विचार व्यक्त किये
हटाएंजन्मों तक तुम मिलना
जवाब देंहटाएंमेरे मन बस कर,
तुम फूलों से खिलना।
मंजूषा मन जी के माहिया सरस व माधुर्य -पूरित हैं । बहुत बधाई ।
आपका बहुत बहुत आभार विभा जी... स्नेह बनाये रखिये
हटाएंललित गेय माहिआ । साधु वाद ।सु. व.।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका पूर्णिमा जी
हटाएंमंजूषा जी बहुत सुंदर माहिया, हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका सुनीता जी
हटाएंमन जी , मन को सुकून मिला आपके माहिया पढ़कर ..
जवाब देंहटाएंबहुत - बधाई आपको !!
ज्योत्स्ना जी आपका बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत अच्छे माहिया हैं सभी...हार्दिक बधाई...|
जवाब देंहटाएं