मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

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डॉ. सुधा गुप्ता
1.
जैसे ही ज़रा
पंख फरफराए
उड़े, छोड़ ममता
घोंसला रोता
धीरज बँधाने को
कहीं, कोई होता।
2
टूटे भरम
नदी हँसती रही
घिरे आग में हम
झूठे सपन
वो मख़मली  फूल
बने कैक्टस शूल
3
फूलों का ढेर
जीवन भर सींचा
मोहक था बग़ीचा
वक़्त का फेर
फूलों का उपवन
बना पाहन-वन
4
प्यास थी घनी
रूठे कुएँ, पोखर
सरिता अनमनी
दो घूँट जल
पाने को तरसे
रहे सदा विफल।

-0-

17 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीया सुधा जी द्वारा रचित ये सेदोका जीवन के अनुभव और संवेदनशीलता को प्रतिबिंबित करते हैं| उन्हें हार्दिक बधाई |

    शशि पाधा

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  2. सुंदर मनोहारी कल्पनाएँ, गहरी संवेदनाएँ लिए, बहुत सुंदर सृजन।
    विशेष


    जैसे ही ज़रा
    पंख फरफराए
    उड़े, छोड़ ममता
    घोंसला रोता
    धीरज बँधाने को
    कहीं, कोई न होता।

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  3. सुंदर मनोहारी कल्पनाएँ, गहरी संवेदनाएँ लिए, बहुत सुंदर सृजन।
    विशेष


    जैसे ही ज़रा
    पंख फरफराए
    उड़े, छोड़ ममता
    घोंसला रोता
    धीरज बँधाने को
    कहीं, कोई न होता।

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  4. अनुपम सृजन ... मर्मस्पर्शी सेदोका सभी !
    प्यास थी घनी
    रूठे कुएँ , पोखर
    सरिता अनमनी ....
    सींच-सींच कर खुद प्यासी सरिता ने भीतर तक भिगो दिया !!

    आ. दीदी को सादर नमन !!

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  5. टूटे भरम
    नदी हँसती रही
    घिरे आग में हम
    झूठे सपन
    वो मख़मली फूल
    बने कैक्टस शूल ।
    सुधा दी मार्मिक सेदोका । सार्थक लेखन के लिये बधाई ।

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  6. दार्शनिक भाव बोध संयुक्त,जीवन के करुण यथार्थ को अभिव्यंजित करते सुन्दर सदोका।आदरणीय सुधा जी को नमन।
    शिवजी श्रीवास्तव

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  7. बेहद सुंदर । संवेदनशील सार्थक

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  8. बेहद सुंदर । संवेदनशील सार्थक

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  9. अप्रतिम लेखनी है आदरणीया सुधा जी को...| उनको नमन क साथ ही बहुत बधाई

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  10. दार्शनिक बोध का स्पर्श लिये,करुणा के भाव से युक्त सुन्दर मार्मिक सदोका।आदरणीय सुधा जी की लेखनी को नमन।

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  12. प्यास थी घनी
    रूठे कुएँ, पोखर
    सरिता अनमनी
    दो घूँट जल
    पाने को तरसे
    रहे सदा विफल।
    आदरणीया सुधा गुप्ता जी सभी सदोका सार्थक एवं मर्मस्पर्शी । दीदी जी आपको और आपकी लेखनी को सादर नमन करती हूँ ।

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  13. अति सुन्दर लेखनी है आपकी आदरणीया ...मन में थम जाती है ऐसी संवेदनाएँ!
    आपको तथा आपकी लेखनी को सादर नमन !

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  14. गहन अनुभूति की सहज अभिव्यक्ति

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