शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

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मंजूषा मन
1
जीवन से हारे हैं
शिकवा क्या करते
अपनों के मारे हैं।
2
धोखा ही सब देते
अपने बनकर ही
ये जान सदा लेते।
3
रोकर भी क्या पाते
गम में रोते तो
रो -रोकर मर जाते।
4
उम्मीद नहीं टूटी
तेरे छलने से
हिम्मत भी है छूटी।

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17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर माहिया मंजूषा जी बधाई।

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  2. मंजूषा जी ख़ूबसूरती से रचे माहिया हैं हार्दिक बधाई |

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  3. बहुत मर्मस्पर्शी - खूबसूरत माहिया लगे सभी । तहेदिल से बधाई लें मन जी ।

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  4. बधाई मंजूषा रचनाओं में छुपा दर्द अनायास ही
    मन की मंजूषा से छलक छलक जाता है
    भिगो जाता है ।
    अंतर्मन ।

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  5. बेहद ख़ूबसूरत, मार्मिक माहिया ! इस सुंदर सृजन के लिए बहुत बधाई आपको... मन जी !!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  6. बहुत सुन्दर मन जी ...आपको हार्दिक बधाई !

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  7. मंजूषा जी बहुत मार्मिक एवं कड़बी सच्चाई कहते माहिया सुन्दर लगे ।बधाई और शुभ कामनायें ।

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  8. मंजूषा जी बहुत मार्मिक एवं कड़बी सच्चाई कहते माहिया सुन्दर लगे ।बधाई और शुभ कामनायें ।

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  9. माहिया पसन्द करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार

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  10. माहिया पसन्द करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार

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  11. इन प्यारे माहिया के लिए मेरी हार्दिक बधाई

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