बुधवार, 17 जनवरी 2018

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मेरी जिंदगी
-भावना शर्मा (पानीपत)

मेरी जिंदगी
नाटक ही तो रही
उम्रभर ये
कठपुतली बनी
जीवन मेरा
पात्र बना इसका
भूमिका रही
कुछ इस तरह             
मैं उम्रभर
अच्छा -बुरा क्या मिला
सोचती रही
एहसास आज ये
मुझको हुआ
जो मर्जी थी उसकी
बस वही था
जैसे चाहा उसने
वैसे मुझको
बनाए रखा कुछ
अच्छी या बुरी
वो मैं नहीं थी कभी
परवाह की
सबकी हर दिन
लापरवाह
सबकी नजरों में
मैं बनी रही
नाराज़ न हो कोई
मुझसे कभी
हँसती हुई कुछ
शब्दों से मैं यूँ
खास चुनती रही
बहुत हुआ
अब चलने भी दो
शुक्रिया करूँ
 मेरे मालिक तेरा
अच्छी या बुरी
मैं तेरी बनी रही
कब पूरा हो
नाटक ये तुम्हारा
आना चाहती
मैं पास तेरे अब
सुनते ही ये
बात वो मेरी हँस
देता है कुछ
मुझ पर वो मेरा
महान सूत्रधार  ।    

12 टिप्‍पणियां:

  1. मन की पीर
    मन सुनता सदा
    'वो' भी सुनेगा
    राह भी निकालेगा
    तू उदास न होना!!!

    भावना जी, आपका चोका पढकर ये विचार मन में आए, सो यही लिख दिया!
    इस भावपूर्ण सृजन के लिए आपको हार्दिक बधाई!!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  2. बहुत बढ़िया चोका लिखा है आपनें भावना जी ...बहुत बहुत बधाई आपको !

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  3. गहन चिंतन से परिपूर्ण सुन्दर चोका ..बधाई भावना जी !

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  4. बहुत बढ़िया चोका...भावना जी बधाई।

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  5. बहुत ही बेहतरीन
    हार्दिक बधाई भावना जी

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  6. बहुत ही बेहतरीन
    हार्दिक बधाई भावना जी

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  7. बहुत सुन्दर तरीके से एक गहरी बात कह दी गई इस चोका में...| आपको बहुत बधाई भावना जी

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