कंठ है प्यासा मानव का ही नहीं हर जीव ,जन्तु और परिन्दों की प्यास का दर्द बयाँ कर गया ।बहुत खूबसूरती से लिखा गया है यह चौका ।बहुत सुन्दर लिखती है कविता जी ।बधाई दिल से ।
जीवन के संघर्षों का अति सुंदर चित्रण पढकर मन को एक नयी चेतना मिली | वास्तव में यही तो जीवन की सच्चाई है | "जो आगे बढ़ते हैं वे पीछे मुडकर नहीं देखते "| मेरी सद्भावनाए कविता बेटी के लिए | आपकी लेखिनी दिन प्रतिदिन प्रखर रही है | श्याम त्रिपाठी हिन्दी चेतना
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ११ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' ११ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीया शुभा मेहता जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंSuperb.......
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार, अनिल जी एवम प्रदीप जी
जवाब देंहटाएंAccha pryyas hai
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार, आदरणीय विजय जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार
जवाब देंहटाएंडाॅ कविता भट्ट साहिबा निहायत ही खूबसूरत कविता मुबारकबाद आप ऐसे ही कहती रहें दुआ गो ख़ाकसार सागर सियालकोटी लुधियाना से
बहुत ही खूबसूरत.........!
जवाब देंहटाएंसुंदर!
जवाब देंहटाएंप्रकृति की उपेक्षा और उसके दुष्परिणाम को रेखांकित करता चोका।
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ मनन करने को मजबूर करता सार्थक चोका है...|
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई...|
हृदयस्पर्शी चोका कविता जी ..हार्दिक बधाई 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंप्रकृति प्रेम का सटीक चित्रण किया। बेहतरीन
जवाब देंहटाएंकंठ है प्यासा मानव का ही नहीं हर जीव ,जन्तु और परिन्दों की प्यास का दर्द बयाँ कर गया ।बहुत खूबसूरती से लिखा गया है यह चौका ।बहुत सुन्दर लिखती है कविता जी ।बधाई दिल से ।
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम आपको प्रणाम।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
प्रिय कविता पहाड़ो की बेटी हो । दरख्तों की व्यथा जानती हो । सुन्दरभाव - कविता ।
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी चोका कविता जी बधाई।
जवाब देंहटाएंआप सभी का हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंजीवन के संघर्षों का अति सुंदर चित्रण पढकर मन को एक नयी चेतना मिली | वास्तव में यही तो जीवन की सच्चाई है | "जो आगे बढ़ते हैं वे पीछे मुडकर नहीं देखते "| मेरी सद्भावनाए कविता बेटी के लिए | आपकी लेखिनी दिन प्रतिदिन प्रखर रही है | श्याम त्रिपाठी हिन्दी चेतना
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत ही उम्दा सृजन
हटाएंहार्दिक बधाई
bahut khub! bahut bahut badhai..
जवाब देंहटाएंआप सभी का हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ११ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
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विशेष : 'सोमवार' ११ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीया शुभा मेहता जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
सही कहा है पहले हम विनाश करते हैं फिर उसी को पाने का प्रयास करते हैं ...
जवाब देंहटाएंइंसान का स्वार्थ प्राकृति को छीन रहा है ... लाजवाब रचना ...
बढिया
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आप सभी का।
जवाब देंहटाएंसुन्दर , सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई कविता जी !!
बहुत सुन्दर... बहुत - बहुत बधाई आपको !
जवाब देंहटाएंसुंदर, सार्थक।
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