डॉ.सुरंगमा यादव
क्या बन जाऊँ!
जो पी के मन भाऊँ
सारे सपने
अपने बिसराऊँ
स्वप्न पिया के
मैं नयन बसाऊँ
मौन सुमन
सुरभित होकर
कंठ तिहारे
मैं लग इठलाऊँ
कुहू -सा स्वर
पिया मन आँगन
कूज सुनाऊँ
पीर-वेदना सारी
सह मुस्काऊँ
बनूँ प्रीत चादरा
पिया के अंग
लग के शरमाऊँ
और कभी मैं
जो जल बन जाऊँ
अपनी सब
पहचान भुलाऊँ
रंग उन्हीं के
फिर रँगती जाऊँ
योगी -सा मन
हो जाए यदि मेरा
सम शीतल
मान -अपमान को
सहती जाऊँ
जो ऐसी बन जाऊँ
तब शायद
पिया के मन भाऊँ
प्रेम बूँद पा जाऊँ
-०-
भावपूर्ण चोका सुरंगमा जी
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई
पूर्वा शर्मा
सुन्दर और भावपूर्ण सृजन सुरंगमा जी.. बहुत-बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंवाह ! प्रेम में समर्पण !
जवाब देंहटाएंअनुपम चोका , बहुत बधाई !
सुंदर भावपूर्ण चोका.... सुरंगमा जी बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रेम में 'मैं' से 'तुम' और तुम्हारे मन मुताबिक़ हो जाने की आकांक्षा ही सर्वोपरि होती है...| इस इच्छा को बहुत अच्छे से आपने इस चोका में प्रस्तुत किया है | मेरी बधाई...|
जवाब देंहटाएंआप सभी को पुनः पुनः धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर मनभावन चौंका । बधाई ।
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