गुरुवार, 2 मई 2019

861-सुनो आवाज़


सुदर्शन रत्नाकर
1
ओस की बूँदें
ओढ़ ली धरती ने
झीनी चादर
मत रखना पाँव
मोती टूट जाएँ।
2
सुनो आवाज़
संगीत है गूँजता
गाते विहग
सुर-लय-ताल में
पवन के  वे संग।
3
ख़ामोश रात
कोहरे में लिपटी
जागती रही
करती इंतज़ार
सूर्य के उजास का।
4
कमल खिले
भँवरे मँडराए
मिला पराग
सुध-बुध है खोई
बचता नहीं कोई।
5
खिल रहे हैं
ग्रीष्म की आतप में
गुलमोहर
दहकते अंगार
धरा पर बिखरे।
6
सदाबहार
महकते रहते
हर मौसम
सुख-दुख सहते
फिर भी मुस्कुराते।

7
धरा ने ओढ़ी
धानी वो चुनरिया
चँदोवे वाली
हवा करे ठिठोली
छूकर चली जाए।
8
साँझ की बेला
खिलने लगी चम्पा
शशि- किरणें
फैली जग आँगन
सुरभित उजाला।
9
 सूरज से ले
ऊर्जा तप जाने की
खिले पलाश
प्रकृति का नियम
तपता वो खिलता।
10
भीनी -सी गंध
खिली आम्र की बौर
बौरी होकर
चहकती कोयल
गूँजते मीठे बोल।
11
वसंती हवा
मधुरस में डूबी
डुबकी लगा
छोड़ कृत्रिम ढंग
प्रकृति को अपना।
12
उपवन में
उड़तीं तितलियाँ
लगती ऐसे
आकाश से उतरीं
कोई परियाँ जैसे।
13
लूट ले गया
निर्मोही वो भँवरा
गंध फूल की
देखो समर्पण
मृत्यु की थी वरण।
14
भ्रमर- चोर
चुराकर ले गया
मधुर रस
देखती रही कली
मुरझा गई फिर।
15
चाँदी बिखरी
पर्वत की गोद से
सुरताल में
झर -झर झरता
झरने का वो जल।

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर ताँका, हार्दिक बधाई।

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  2. बहुत प्यारे तांका ,एक से बढ़कर एक...आद.दीदी को हार्दिक बधाई!!

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  3. सुन्दर सृजन के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई ।

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  4. प्रकृति व सौसम के रंगों से सजे बहुत ही सुंदर ताँका दीदी। एकृएक शब्द अनमोल।
    सादर,
    भावना सक्सैना

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  5. सुन्दर शब्द संयोजन, भावपूर्ण ताँका| प्रकृति का मोहक रूप शब्दों में बंधा| हार्दिक बधाई|

    शशि पाधा

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  6. वाह,उत्कृष्ट एवम मनभावन,सभी ताँका बेहद खूबसूरत,बधाई सुदर्शन जी को

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  7. प्रतिक्रिया के लिए आप सब का हार्दिक आभार।

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  8. बागों की सैर करा लाई ये रचनाएं
    बहुत मनोरम

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  9. बहुत मनभावन तांका हैं, हार्दिक बधाई

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