रविवार, 20 सितंबर 2020

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1-मंजूषा मन

1

ये आँखें भर आईं

तुमने प्यार -भरी


बातें जो दुहराईं।

2

छलकीं आँखें मेरी

तड़पाएँ  मन को

प्रियवर यादें तेरी।

3

छाए हैं मेघ घने

स्वप्निल पावस की

आशा का स्रोत बने।

-0-

2-रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

1

यूँ तुम बिन जीते हैं 


ज़हर जुदाई का

हर पल हम पीते हैं। 

2

क्यों ये मजबूरी है

अब तो आ जाओ 

तड़पाती दूरी है।

3

कब तक ग़म खाएगा

रात ढली दिल की

वो अब ना आएगा।

4

अँधियारा है जीवन

सूरज सम आओ

तुम लेकर रूप- किरन।

5

ये बदरी जो छाई

रिमझिम बनकरके

यादें  लेकर आई 

6

कुछ घाव निराले हैं

दूर नहीं होते

ये गम के छाले हैं।

7

प्रति पल ही रुदन करे

प्रिय बिन विरहन का

मन कैसे धीर धरे !

8

साँसें ये बिखरी हैं 

निस दिन नाम जपे

पीड़ाएँ निखरी हैं ।

-0-

15 टिप्‍पणियां:

  1. मंजूषा मन एवं रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशु'जी के माहिया प्रीति और विरह के सुंदर भावों की सहज सृष्टि के प्रभावी माहिया हैं।दोनो को बधाई।

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  2. मंजूषा जी और रश्मि जी आप दोनो द्वारा माहिया का सुन्दर सृजन है प्रीत और विरह वेदना के अनेक भाव इनमें संहित हैं हार्दिक बधाई |

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  3. शृंगार के दोनों रूपों का भावपूर्ण वर्णन करते सुंदर माहिया ।
    मंजूषा जी एवं रश्मि जी को हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  4. बहुत खूबसूरत।
    छोटी मगर गहरी।
    पधारें नई रचना पर 👉 आत्मनिर्भर

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  5. मेरे प्रिय रचनाकार मित्रों का हृदय तल से आभार!
    नव सृजन की प्रेरणा सदैव यूँ ही मिलती रहे!
    पुन: हार्दिक धन्यवाद!
    सादर

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  6. बहुत ख़ूबसूरत माहिया! मंजूषा जी, रश्मि विभा जी ...आप दोनों को बहुत बधाई!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  7. मेरे माहिया प्रकाशित करने के लिए आदरणीय सम्पादक मंडल का हार्दिक आभार

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  8. सुंदर सृजन। मंजूषा जी व रश्मि जी को बधाई।
    भावना सक्सैना

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